भगवा देख गुस्सा क्यों आता है? तय करो – दिक्कत हिंदू से है या संघ से

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

कभी भगवा आतंकवाद, कभी संघ प्रमुख की गिरफ्तारी की स्क्रिप्ट, और कभी एक आतंकी की मौत पर आंसू… सवाल उठता है कि आखिर ये राजनीतिक कथा कहना क्या चाहती है?

तय क्यों नहीं करते – दिक्कत हिंदू धर्म से है या संघ से?

माफ़ कीजिए, आप हिंदू धर्म से नफरत करते हैं या संघ से?

क्योंकि जब ‘भगवा आतंकवाद’ जैसा शब्द गढ़ा जाता है, तो आप करोड़ों आस्थाओं को एक ही फ्रेम में खड़ा कर देते हैं। ये सिर्फ विचारधारा पर हमला नहीं, एक पूरी परंपरा को कटघरे में खड़ा करने जैसा है।

जब आतंकी की मौत पर रोया जाता है…

पाकिस्तान के आतंकी के मरने पर एक “सेक्युलर तबके” की आंखों में नमी दिखती है। वहीं, जब हिन्दू साध्वी पर मुकदमा चलता है, तो ‘भगवा आतंकवाद’ की चिल्लाहट शुरू हो जाती है।

“इसे सेक्युलरिज़्म कहें या सेलेक्टिव सेंसिटिविटी?”

RSS प्रमुख की गिरफ्तारी की ‘स्क्रिप्ट’ – बस ‘फोन आया था’ से?

ATS के रिटायर्ड अधिकारी महबूब मुजावर के अनुसार —

“मुझसे कहा गया कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार कर लो… बस, ऊपर से फोन आया था।”

बिना सबूत, बिना चार्जशीट, बस मौखिक आदेशों पर देश की सबसे बड़ी सांस्कृतिक संस्था को टारगेट?

यह जांच नहीं, राजनीति की स्क्रिप्ट लगती है।

हिंदू आतंकवाद या राजनीतिक हथियार?

जब कोई मुस्लिम आरोपी पकड़ा जाता है, तो “पंथ से मत जोड़ो” की गुहार लगती है। लेकिन जब भगवा कपड़े में कोई संदिग्ध पकड़ा जाए – तो “संघी आतंकवाद”, “सनातन खतरे में”, “हिंदू कट्टरपंथ” जैसे टैग लगते देर नहीं लगती।

“अगर आतंकवाद का धर्म नहीं होता, तो भगवा शब्द से इतनी बेचैनी क्यों?”

राजनीति की थाली में धर्म का चटपटा मसाला

हर चुनाव से पहले या किसी संवेदनशील मुकदमे के नतीजे के बाद, ये कथा फिर से परोसी जाती है –
भगवा = खतरनाक
संघ = सांप्रदायिक
हिंदू भाव = वोटबैंक पॉलिटिक्स

तय करो भाई, नफरत किससे है?

  • अगर संघ से विरोध है – तो वैचारिक बहस करो।

  • अगर हिंदू धर्म से विरोध है – तो खुलकर बोलो।

  • लेकिन भगवा रंग को बारूद से मत रंगो, क्योंकि वो किसी एक पार्टी की संपत्ति नहीं – भारत की पहचान है।

“भगवा देखकर डरने वालों को आइना दिखाना जरूरी है, वरना अगली बार सूरज उगने पर भी FIR हो सकती है – ‘भगवा फैलाने’ के लिए!”

राजनीति के नरेटिव, मीडिया की चाल और धर्म के नाम पर खेली जा रही चालों को समझिए, पूछिए – और सबसे ज़रूरी। तय कीजिए – किससे विरोध है, और क्यों।

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