
“बांग्ला देखेचो?” अब हर दिन देखना ही होगा! पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स को निर्देश दिया है कि वे रोज़ाना प्राइम टाइम (दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक) में कम से कम एक बांग्ला फिल्म जरूर चलाएं।
ये आदेश “पश्चिम बंगाल चलचित्र क़ानून, 1954” के तहत जारी हुआ है और इसे “तुरंत प्रभाव” से लागू कर दिया गया है।
मतलब: अब ‘KGF’ हो या ‘Jawan’, पहले चलेगी ‘Belashuru’ या ‘Projapoti’!
क्यों लिया गया यह फैसला? क्या है ‘मूवी मूवमेंट’ के पीछे की सोच?
इसका कनेक्शन सिर्फ सिनेमा प्रेम से नहीं है, बल्कि इसे जोड़ा जा रहा है बंगाल की भाषा पहचान और संस्कृति की सुरक्षा से। हाल ही में ममता बनर्जी ने भाषा आंदोलन की अपील की थी। ये आदेश उसी दिशा में एक ‘स्क्रीन स्ट्राइक’ माना जा रहा है।
सरकार कहती है — “बांग्ला फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि उन्हें दर्शकों के सामने समय पर पेश किया जाए।”
ट्रेड एनालिस्ट कहते हैं — “बॉक्स ऑफिस कलेक्शन नहीं, अब सरकारी संरक्षण से चलेगी फिल्म!”
बॉलीवुड और हॉलीवुड को क्या होगा अब?
इस नियम से हिंदी और इंग्लिश फिल्मों के शो कम होंगे, खासकर प्रीमियम शो टाइमिंग यानी कि प्राइम टाइम में।
अब कोई भी थिएटर मालिक पूरे दिन “ओप्पेन्हाईमर” नहीं घुमा सकता, उसे बीच में “बेहुला” या “हर हर ब्योमकेश” घुसेड़नी पड़ेगी।
सिनेमा मालिकों की हालत — “Box Office से ज़्यादा अब Government Office देखना पड़ेगा!”
फिल्म प्रेमियों की प्रतिक्रियाएं
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एक दर्शक बोले: “मुझे तो बांग्ला समझ नहीं आती, पर अब popcorn के साथ subtitles भी खरीदने पड़ेंगे।”
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एक थिएटर मालिक ने कहा: “अब फिल्म का नहीं, समय का चुनाव सरकार करेगी।”
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कुछ ने कहा: “कम से कम South वालों की तरह regional pride तो दिखा!”
ये भी जानिए — क्या ये हमेशा रहेगा?
राज्य सचिवालय की विज्ञप्ति के अनुसार, यह निर्देश “अगले आदेश तक” लागू रहेगा।
मतलब: जैसे ही जनता की प्रतिक्रिया ज्यादा तीखी हो जाएगी, तब सरकार बोलेगी — “Just a trailer tha, full movie नहीं!”
सिनेमा में अब सेंसर नहीं, सरकार का ‘सेक्शन’ लगेगा!
बांग्ला फिल्मों को प्रमोट करना एक सराहनीय पहल हो सकती है, लेकिन जब ये आदेश में बदल जाए, तो सवाल भी उठते हैं —
क्या ये संस्कृति का सम्मान है या कला की आज़ादी पर नियंत्रण?
फिलहाल तो बंगाल में “अब हर शो में एक बांग्ला ज़रूरी है” वाला बोर्ड जल्द ही थिएटरों में लगेगा!