आइयाशियाँ बन करो नवाबो, वैक्सीन लगी है पर मस्ती में लगाम दो!

स्वास्थ्य विशेषज्ञ
स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डॉ. आशुतोष दुबे

नख्लाऊ के नवाबों, ज़रा गौर फरमाइए!
वैक्सीन लगवा लेने का मतलब ये नहीं कि आप घंटाघर पर रात दो बजे तक गली-कूचों में चाय-सिगरेट और चटपटी चर्चा फरमाते रहें।

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महबूबा से मिलना है? ज़रूर मिलिए, इश्क पर कौन रोक लगा सकता है!
लेकिन मास्क लगाए बिना उसका दीदार करने चले तो फिर अस्पताल में ही होगी अगली मुलाक़ात।

शादी में बुलावा आया है?
पहले सोचिए – क्या आप सिर्फ़ “रसगुल्ला और बिरयानी के दीवाने” हैं या फिर ज़िम्मेदार नागरिक भी हैं?

सर्दी-जुकाम?

“अरे कुछ नहीं हुआ… मौसम की मार है” बोलने वाले भाइयों, ये गुप्त रोग नहीं, पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है। डॉक्टर को सच बताइए, ताकि समय रहते इलाज मिल सके।

देर रात घंटाघर वाली मस्ती?

माफ कीजिए, ये “मुग़ल-ए-आज़म” का ज़माना नहीं। अब अगर कोरोना का नया सब-वेरिएंट आ गया तो “नवाबी मिज़ाज” भी ICU में पहुंच जाएगा।

मस्ती में रहो, लेकिन मस्तीखोरी मत करो।
वैक्सीन से सुरक्षा मिली है, अमरत्व नहीं।
महफिलों में जाएं, लेकिन मास्क के साथ।
बीमारी को छुपाएं नहीं, दिखाएं डॉक्टर को।

अब आप तय कीजिए — “मिर्ज़ा ग़ालिब की गली के शायर बनना है या रुग्णालय की बेड पर मरीज?”

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