बलिया में ‘मुर्दों’ से रजिस्ट्री! तहसील में भू-माफिया का काला खेल उजागर

Ajay Gupta
Ajay Gupta

बलिया ज़िले से सामने आई ये खबर किसी क्राइम वेब सीरीज़ की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि हकीकत है। बांसडीह रोड थाना क्षेत्र के बजहा गांव में भू-माफिया अब इस हद तक गिर चुके हैं कि अब 1933, 1960 और 1975 में मरे लोगों के नाम पर ज़मीन की रजिस्ट्री करवा रहे हैं।

“अब रजिस्ट्री कराने के लिए ज़िंदा रहना ज़रूरी नहीं… बस रिकॉर्ड में नाम होना चाहिए!”

1933 में मरे व्यक्ति के नाम रजिस्ट्री! तहसील में तहलका

गांव के कृपाशंकर तिवारी सहित करीब 8–10 ग्रामीण जिलाधिकारी बलिया के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचे। इनका आरोप है कि गांव का एक भू-माफिया उनके पूर्वजों की ज़मीन पर फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए कब्ज़ा जमाने की साजिश रच रहा है।

पीड़ितों के आरोप:

  • भू-माफिया “अक्षयबर नाथ तिवारी” ने 1962 में मरे व्यक्ति के नाम पर रजिस्ट्री करवाई।

  • तहसील के तहसीलदार, आरके, बड़े बाबू – सभी इस खेल में शामिल हैं।

  • दो-दो बार चकबंदी (1962 और 2005) हो चुकी, फिर भी ज़मीन की मिल्कियत पर सवाल।

मुर्दा आदमी कर रहा रजिस्ट्री? तहसीलदार को ‘रजिस्ट्री की डेट’ तक नहीं पता!

गांववालों की मानें तो कई रजिस्ट्री ऐसी हैं जो उन लोगों के नाम से हो रही हैं जो कई दशक पहले मर चुके हैं।
जब तहसीलदार से रजिस्ट्री की तारीख पूछी गई तो कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला।

“तहसीलदार को इतनी समझ नहीं कि मुर्दा आदमी रजिस्ट्री कैसे कर सकता है, तो उन्हें चपरासी की नौकरी करनी चाहिए।” – कृपाशंकर तिवारी

भू-माफिया + सिस्टम = लूट की खुली छूट?

इस घोटाले में यह भी सामने आया कि तहसील कार्यालय के कर्मचारी खुद भू-माफियाओं से मिले हुए हैं। डीलिंग क्लर्क से लेकर SDM तक – सबके नाम आरोप में हैं।

ये मामला सीधे तौर पर प्रशासनिक भ्रष्टाचार और डिजिटल रिकॉर्ड में छेड़छाड़ का भी संकेत देता है।

जिलाधिकारी से गुहार, पर क्या कार्रवाई होगी?

अब सवाल यह है कि – क्या बलिया प्रशासन, इस मामले में केवल कागज़ी नोटिंग करेगा या वास्तव में रजिस्ट्री विभाग और तहसील पर छापा मारेगा?

अगर ऐसे मामलों में सख्ती नहीं हुई तो आने वाले समय में शायद भविष्य में पैदा होने वालों के नाम से भी रजिस्ट्री हो जाए।

‘डिजिटल इंडिया’ में ‘डेड इंडिया’ से दस्तखत!

जब एक जिले में मर चुके लोग ज़मीन बेचने लगें और अधिकारी इस पर चुप रह जाएं, तो ये सिर्फ भू-माफिया की नहीं, सिस्टम की भी हार है। बात सिर्फ बलिया की नहीं, सवाल पूरे सिस्टम पर है – “जब रिकॉर्ड सिस्टम गड़बड़ हो जाए, तो इंसाफ कब मिलेगा? और किसे?”

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