
जब बारिश ने दिखाई बहराइच की असली तस्वीर! शुक्रवार की शाम बहराइच में सिर्फ कुछ मिनटों की बारिश ने वह कर दिखाया जो बरसों की शिकायतें नहीं कर सकीं – सिस्टम की पोल खोल दी।
“शहर की सड़कों से लेकर कब्रिस्तान तक”
हर जगह सिर्फ पानी ही पानी नहीं था, बल्कि नाली का गंदा पानी था। हाँ, वही – जो पोस्टरों में कहीं नहीं दिखाया जाता।
मोलवीबाग कब्रिस्तान बना गंदे नाले का रिजॉर्ट?
बहराइच के अग्रसेन चौक स्थित मोलवीबाग कब्रिस्तान में, जहाँ सुकून और सम्मान की उम्मीद की जाती है, वहीं इस बार बरसात के पानी ने गंदगी से स्वागत किया।
नाले की दीवार पिछले कई वर्षों से टूटी हुई है।
हर बार आश्वासन मिलता है – “हो जाएगा…” और हर बार बारिश कहती है – “चलो फिर से दिखाते हैं असली हाल।”
5 फुट की दीवार = 5 साल की उम्मीद?
नगर पालिका के लिए ये 5 फुट की टूटी दीवार, मानो किसी मेट्रो प्रोजेक्ट से कम नहीं!
बजट पास, प्लान पास, ट्वीट पास – बस काम पास नहीं होता।
कब्रिस्तान के ज़िम्मेदारों ने कई बार दी सूचना, मगर अफसरों ने सुना और कहा – “आपका आवेदन आगे भेज दिया गया है। शायद बारिश तक पहुंचेगा।”
दुकानों में घुसा पानी, फुटपाथ की सब्जियाँ तैरने लगीं
शहर के मुख्य बाजारों, गलियों और चौराहों की हालत तो कुछ यूँ रही:
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दुकानों में घुसता पानी
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मकानों के दरवाज़े पानी रोकते थक गए
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फुटपाथ की सब्जियाँ “बोटिंग” मोड में आ गईं
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लोग सोच में पड़ गए – “ये बारिश है या NDRF की प्रैक्टिस?”
स्वच्छता अभियान और हकीकत में फासला
“नगर पालिका बहराइच” सोशल मीडिया पर जिस तरह से साफ-सफाई की पोस्टें डालती है, उसे देखकर लगा था कि बहराइच सिंगापुर बनने वाला है।
लेकिन शुक्रवार की बारिश ने बता दिया – सिर्फ कैप्शन बदलने से सड़कों की सच्चाई नहीं बदलती।
जिम्मेदारों से उम्मीदें? या वो भी बह गईं पानी में?
शहर की जनता अब पूछ रही है:
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क्या एक कब्रिस्तान की दीवार बनवाना इतना कठिन है?
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क्या हर बार बारिश से पहले वही वादे दोहराना ही नियति है?
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क्या नगर पालिका सिर्फ “अस्थायी सफाई” और “स्थायी पोस्ट” में व्यस्त है?
बहराइच बना जलनगर, जनता बनी सहनशील नगरवासी
बहराइच की खूबसूरती अब “झीलनुमा गलियों” में बदल गई है। लोगों को Instagram-worthy लोकेशन तो मिल गई, मगर संवेदनशील नागरिक के तौर पर उन्हें जवाब भी चाहिए।
बहराइच एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर है। लेकिन अगर 5 फुट की टूटी दीवार और कुछ इंच की बारिश भी सिस्टम की नींव हिला दे, तो फिर स्वच्छता, सुंदरता और विकास केवल नारों तक ही सीमित रह जाते हैं।