
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में स्कूल वाहनों की सुरक्षा को लेकर सख्त निर्देश जारी किए हैं। सरकार का फोकस बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर है — जिसमें परमिट की अनिवार्यता, वाहन की फिटनेस, चालक का पुलिस व मेडिकल सत्यापन, और मासिक RTO निरीक्षण शामिल हैं।
लेकिन, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। बहराइच के AIIMS स्कूल में हालात कुछ ऐसे हैं कि सरकार के निर्देश सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित रह गए हैं।
8 सीट की वैन में 14 बच्चे: ये स्कूली वाहन है या ‘Human Tetris’?
AIIMS स्कूल में जो वैन चलाई जा रही हैं, वे अक्सर Tata Magic, Maxximo, Supro जैसी छोटी वैन होती हैं जिनमें अधिकतम 8 यात्रियों की अनुमति होती है (ड्राइवर सहित)।
मगर यहां बच्चों को ऐसे ठूंसा जा रहा है जैसे वे इंसान नहीं, ट्रक की खेप हों।
ना सीट बेल्ट, ना फर्स्ट एड किट, ना फायर एग्जिट, और ना कोई सेफ्टी मॉनिटरिंग सिस्टम।
यह सिर्फ नियमों की अनदेखी नहीं, बच्चों की जान के साथ सीधा खिलवाड़ है।
RTO की चेतावनी, फिर भी स्कूल का ‘No Fear’ एटिट्यूड
परिवहन आयुक्त ने सभी RTO/ARTO को आदेश दिया है कि वे हर स्कूल के वाहनों की मासिक समीक्षा करें —जिसमें चालक का पुलिस सत्यापन, स्वास्थ्य जांच, वाहन दस्तावेज़ और फिटनेस शामिल है।
इसके अलावा, हर स्कूल को “विद्यालय परिवहन सुरक्षा समिति” बनानी है जो इन सभी पहलुओं की निगरानी करे।
लेकिन AIIMS स्कूल ने न तो समिति बनाई, और न ही परमिट सिस्टम का पालन किया।
अधिकारी चेतावनी देते हैं, स्कूल कहता है – “करे जो करना है!”
पत्रकारिता पर भी प्रेशर: सच दिखाया तो रिपोर्टर की वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू
जब पत्रकार ने इस मामले की पड़ताल शुरू की और वीडियो रिकॉर्डिंग कर स्कूल प्रबंधन से सवाल पूछे, तो जवाब देने के बजाय AIIMS स्कूल की प्रधानाचार्या ने खुद पत्रकार की वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू कर दी — जाहिर है, मकसद था दबाव बनाना।
क्या अब पत्रकारिता अपराध बन चुकी है?
क्या स्कूलों में पारदर्शिता के बजाय पर्दादारी का दौर लौट आया है?
नियमों की किताब क्या कहती है?
सरकार के अनुसार:
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बिना परमिट कोई भी वाहन स्कूली बच्चों को नहीं ले जा सकता
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स्कूल परिसर से केवल औपचारिक रूप से स्वीकृत वाहन ही संचालित हो सकते हैं
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अगर कोई घटना होती है, तो पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होगी
मगर AIIMS स्कूल की गाड़ियां ना परमिट में हैं, ना नीति में, बस धंधे में हैं।
सवाल सरकार से, प्रशासन से और समाज से भी
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क्या बहराइच प्रशासन इस स्कूल पर कार्रवाई करेगा?
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क्या बच्चों की सुरक्षा सिर्फ विज्ञापन की बात रह गई है?
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और क्या पत्रकारों को अब सच दिखाने के लिए धमकियों का सामना करना होगा?
सुरक्षा नहीं, व्यापार बना स्कूल ट्रांसपोर्ट?
AIIMS स्कूल का यह मामला एक मिसाल नहीं, एक चेतावनी है।
सरकार ने सिस्टम बनाया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कमी है निगरानी, और बढ़ी है मनमानी।
जब तक स्कूलों को सज़ा नहीं मिलेगी, तब तक ये “Human Cargo Vans” बच्चों को ढोती रहेंगी —
और अगली बार यह खबर शायद दुर्घटना की होगी, जांच की नहीं।
“स्कूल अगर मंदिर है, तो वैन उसमें जाने का सुरक्षित रास्ता होनी चाहिए — न कि मौत की गाड़ी।”
संजय निषाद- “ब्लैक कॉफी, बकलावा और सुलह