
1969 की “आराधना” वो फिल्म है जिसने प्यार, त्याग, साज़िश और “मेरे सपनों की रानी” जैसी चाय की चुस्की वाला रोमांस परोसा। शक्ति सामंत की यह फिल्म बस फिल्म नहीं थी — यह राजेश खन्ना के माथे पर टिका सुपरस्टार का तिलक थी।
बिहार बुला रहल बा कि कुर्सी?” तेजस्वी के तंज पर चिराग चुप
मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू?
इस गाने ने लोगों को इतना दीवाना किया कि कुछ ने रेलवे टिकट सिर्फ इस सीन को रीक्रिएट करने के लिए खरीदा। राजेश खन्ना कार में, शर्मिला टैगोर ट्रेन में, और किशोर दा आवाज़ में — और हम सब दिल थामे स्क्रीन पर।
जब ये गाना बजता है, तो लगता है आज भी IRCTC वेटिंग टिकट वालों को उम्मीद मिलती है!
किशोर कुमार की वापसी: म्यूजिक से मिला ‘गुरु दक्षिणा’
एस.डी. बर्मन के संगीत ने तो वैसे ही दिल जीत लिया था, लेकिन किशोर कुमार की आवाज़ में “रूप तेरा मस्ताना” ने बॉलीवुड को नया रुख दे दिया।
लता जी और आशा जी थोड़ा नाराज़ थीं… कि “हमारे बिना हिट? ये कैसा रिव्यू है!”
सस्पेंस भी था: ट्रैक बदलती है, लेकिन ट्रेन वहीं रहती है!
“आराधना” में एक बोल्ड ट्विस्ट भी आता है — शर्मिला टैगोर का माँ बनना और अदालत का ड्रामा। ज़रा सोचिए, 1969 में जब लोग राजश्री की “संस्कार वाली बहू” देखने जाते थे, तो वहां शर्मिला बेबी माँ निकल आती हैं!
राजेश खन्ना: पहले सुपरस्टार, बाद में Meme Material
राजेश खन्ना का ये डबल रोल आज भी टीवी चैनलों का “संडे स्पेशल” है। उनकी आंखों की झपक और मुस्कान ने उस दौर की लड़कियों को छत की मुंडेर तक पहुँचा दिया था।
नोट: उस समय मोबाइल नहीं था वरना ‘रूप तेरा मस्ताना’ पर Instagram Reels की बाढ़ आ जाती।
जब प्यार भी क्लासिक था और सिनेमा भी
“आराधना” एक ऐसी फिल्म है जो ना सिर्फ राजेश खन्ना की पोस्टर वैल्यू बढ़ाती है, बल्कि हमें याद दिलाती है कि सिनेमा में सस्पेंस, संगीत और सच्चा रोमांस कैसे पिरोया जाता है।
बैजू बावरा रेट्रो रिव्यू: जब सुरों से हुआ प्रतिशोध | क्लासिक म्यूज़िकल का जादू