फॉर्च्यूनर चाहिए थी, जेल मिल गई! – 10 साल बाद मिला अंकित को इंसाफ

अजमल शाह
अजमल शाह

एक दशक पहले नोएडा की सड़कों पर हुई सनसनीखेज़ हत्या के केस में अब इंसाफ का सूरज निकला है। TCS में काम करने वाले इंजीनियर अंकित चौहान की हत्या के मामले में CBI की विशेष अदालत ने दो आरोपियों शशांक जादौन और मनोज कुमार को उम्रकैद की सजा सुना दी है।

साथ ही, कोर्ट ने ऐसा जुर्माना ठोका कि जैसे कहा हो – “अब गाड़ी नहीं, जेल में गुज़ारो ज़िंदगी।”

फॉर्च्यूनर के लालच में ली गई जान

ये मामला है 13 अप्रैल 2015 का, जब अंकित चौहान अपनी नई फॉर्च्यूनर कार से नोएडा के सेक्टर 135 से लौट रहे थे। गाड़ी में उनके दोस्त गगन दुधोरिया भी थे, जो इस वारदात के एकमात्र चश्मदीद बने। रास्ते में दो हमलावरों ने उन्हें ओवरटेक कर कार रोकी, और गोली मार दी।

तब से लेकर अब तक इंसाफ के इंजन में बहुत सी तारीखें भरी गईं, पर अब आकर फैसले की डेस्टिनेशन आई है।

IIT से अपराध तक: जादौन की इंजीनियरिंग गलत दिशा में

शशांक जादौन, जो कभी दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (DTU) का छात्र था, प्रॉपर्टी डीलिंग में घाटा खाकर डाका डीलिंग पर उतर आया। उसके दोस्त पंकज कुमार ने आइडिया दिया – “चलो फॉर्च्यूनर लूटते हैं, बेच देंगे सतपाल भाटी को – वो चोरी की गाड़ियों का बड़ा ग्राहक है।”

बिज़नेस प्लान था फुल टाइट – लेकिन GPS सीधा जेल की ओर जा रहा था!

प्लान था फिल्मी, अंजाम था खौफनाक

साजिश के अनुसार:

  • प्लान: फॉर्च्यूनर लूटनी है
  • जगह: NH-24, दिनदहाड़े
  • हथियार: .32 बोर रिवॉल्वर (लाइसेंसी भी थी, क्या बात!)
  • साथी: मनोज कुमार (फ्रेंड फॉर क्राइम)

पर कोर्ट ने कहा – “गाड़ी तो मिली नहीं, अब उम्र भर की सवारी जेल में करो!”

अदालत ने क्या कहा?

13 अक्टूबर 2025 को कोर्ट ने दोनों को आजन्म कारावास की सजा सुनाते हुए कहा, “ये अपराध हाईवे पर दिनदहाड़े हुआ, जिससे देश में कानून के डर की कमी दिखती है।”

कोर्ट ने साथ ही यह भी माना कि गवाह गगन की गवाही मामले की रीढ़ बनी।

चार्जशीट, ट्रांसफर और ट्रायल की लंबी यात्रा

  • 29 अगस्त 2017: CBI ने चार्जशीट फाइल की
  • 2019: सुप्रीम कोर्ट ने केस गाजियाबाद से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया
  • 20 सितंबर 2025: दोष सिद्ध
  • 13 अक्टूबर 2025: सजा घोषित

जैसे-तैसे न्याय की ट्रेन मंज़िल पर पहुँची।

न्याय का मतलब सिर्फ सज़ा नहीं

अंकित के परिवार के लिए ये फैसला किसी दीपावली के दिए जैसा है — देर से जला, लेकिन अंधेरे को हराया।

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