
इसराइल में अमेरिकी राजदूत माइक हकाबी ने हाल ही में एक ऐसा सुझाव दिया, जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। उनका कहना है कि मुस्लिम देशों को अपनी कुछ ज़मीन फ़लस्तीन के लिए दे देनी चाहिए ताकि एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र की स्थापना हो सके। इस सुझाव का जमीनी स्तर पर क्या अर्थ होगा? क्या खाड़ी देश और अन्य मुस्लिम देश इस पर सहमत होंगे? चलिए गहराई से समझते हैं।
“मुस्लिम देश दें ज़मीन फ़लस्तीन को” – हकाबी का बम!
क्या है माइक हकाबी का सुझाव?
माइक हकाबी ने कहा कि मुस्लिम देशों के पास इसराइल के मुकाबले 644 गुना ज़्यादा जमीन है, इसलिए फ़लस्तीनी समस्या का समाधान हो सकता है यदि मुस्लिम देश अपनी ज़मीनों का कुछ हिस्सा फ़लस्तीनी राष्ट्र को दे दें। उन्होंने इसे एक व्यावहारिक विकल्प बताया जो मध्य पूर्व के विवाद को खत्म कर सकता है।
क्या मुस्लिम देश ऐसा करेंगे? खाड़ी देश की प्रतिक्रिया कैसी होगी?
-
खाड़ी देशों की स्थिति: खाड़ी के अमीर देश जैसे सऊदी अरब, कतर, यूएई अपनी संप्रभुता और राजनीतिक स्थिरता के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।
-
राजनीतिक अस्थिरता: अपनी जमीन देने का मतलब होगा राष्ट्रीय संप्रभुता पर बड़ा सवाल। ये देश इस तरह के सुझाव को सीधे तौर पर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होंगे।
-
धार्मिक व भावनात्मक जुड़ाव: फिलिस्तीन मुद्दा मुस्लिम दुनिया में भावनात्मक रूप से गहरा जुड़ा हुआ है। ज़मीन देना न केवल राजनीतिक मुद्दा है, बल्कि धार्मिक भावनाओं को भी छूता है, जिससे भी विवाद बढ़ सकता है।
मुस्लिम देशों को क्या नफा-नुकसान होगा?
-
नुकसान:
-
राष्ट्रीय संप्रभुता का खतरा
-
घरेलू असंतोष और विरोध प्रदर्शन
-
क्षेत्रीय राजनीतिक अस्थिरता बढ़ना
-
-
नफा:
-
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ देश छवि सुधार सकते हैं
-
मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं (पर यह दूर की संभावना है)
-
जियोपॉलिटिक्स में इसका क्या असर होगा?
-
इसराइल के पक्ष में: इस प्रस्ताव से इसराइल को फायदा होगा क्योंकि वह फिलिस्तीन की सीमा विवाद से उबर सकता है।
-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति: अमेरिका और उसके सहयोगी इस समाधान का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन यह मुस्लिम देशों के बीच विघटन भी पैदा कर सकता है।
-
खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता: अगर खाड़ी देश ऐसा कदम उठाते हैं, तो वे क्षेत्रीय राजनैतिक गठजोड़े और आर्थिक सहयोग पर भारी असर पड़ सकता है।
जमीनी हकीकत क्या कहती है?
माइक हकाबी का सुझाव राजनीतिक दृष्टि से नई सोच जरूर है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करना बेहद मुश्किल है।
खाड़ी देश और अन्य मुस्लिम राष्ट्र अपनी संप्रभुता छोड़ने के लिए तैयार नहीं दिख रहे। फिलिस्तीनी मुद्दे पर भावनात्मक और राजनीतिक संवेदनशीलता इसे एक विवादास्पद प्रस्ताव बनाती है।
फिलहाल यह सुझाव एक कूटनीतिक चर्चा का हिस्सा बना रहेगा, परंतु इसे लेकर व्यावहारिक कदम उठाना नजदीकी भविष्य में कठिन नजर आता है।
मध्य पूर्व की राजनीति में संतुलन बनाए रखना हर देश की प्राथमिकता है, इसलिए बदलाव धीरे-धीरे और सोच-समझकर होगा।
“बनास ने छीन लिए आठ सपने!” — जयपुर के युवकों की पिकनिक बनी त्रासदी