
अमेरिका ने दुनिया भर में अपने दूतावासों को नए स्टूडेंट वीज़ा आवेदनों को अस्थायी रूप से रोकने का आदेश दिया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच सरकारी फंडिंग को लेकर तनातनी चरम पर है।
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आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका अब नए आवेदकों की सोशल मीडिया की गहन जांच शुरू करने जा रहा है। यानी अब क्लासरूम में दाखिला पाने से पहले, छात्र की डिजिटल छवि की ‘परीक्षा’ होगी।
हार्वर्ड के फंडिंग पर खतरा
इस विवाद की चिंगारी तब भड़की जब ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को मिलने वाले करीब 10 करोड़ डॉलर के फंड की समीक्षा का ऐलान किया। माना जा रहा है कि हार्वर्ड के साथ लगभग 30 सरकारी अनुबंधों को या तो खत्म किया जा सकता है या किसी अन्य संस्थान को हस्तांतरित किया जा सकता है।
व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,“जीएसए (Government Services Agency) अन्य एजेंसियों को पत्र भेजने वाली है, जिसमें हार्वर्ड के अनुबंधों को पुनः आवंटित करने की संभावना तलाशी जाएगी।”
दो महीने से चल रहा टकराव
बीते हफ्ते ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड में विदेशी छात्रों के नए दाखिले पर रोक लगाई थी, जिसके बाद यूनिवर्सिटी ने इस निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी। माना जा रहा है कि यह कोर्ट केस उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता बनाम राजनीतिक हस्तक्षेप की लड़ाई का नया अध्याय हो सकता है।
हार्वर्ड की ओर से अब तक इस पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है।
क्यों यह फैसला अहम है?
अमेरिका की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, विशेषकर हार्वर्ड, विदेशी छात्रों से मिलने वाली फीस और फंडिंग पर निर्भर हैं। इन छात्रों का योगदान न सिर्फ आर्थिक है, बल्कि वे शोध, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अहम भूमिका निभाते हैं।
सोशल मीडिया से स्कॉलरशिप तक
अब वीज़ा प्रक्रिया में सोशल मीडिया की जांच को शामिल करना एक और बड़ा मोड़ है। यह फैसला अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं का हिस्सा बताया जा रहा है, लेकिन इससे शिक्षा क्षेत्र में गोपनीयता और भेदभाव पर भी बहस छिड़ सकती है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और ट्रंप प्रशासन के बीच चल रही खींचतान अब सिर्फ कोर्टरूम की लड़ाई नहीं रही, यह सवाल है कि अमेरिका की शिक्षा नीति किस दिशा में जा रही है।
क्या विदेशी छात्रों के लिए अमेरिका का दरवाज़ा बंद होता जा रहा है?
या यह सिर्फ एक राजनीतिक दांव है जो अगली प्रशासनिक लहर में पलट सकता है?
अभी इस लड़ाई में कई अध्याय बाकी हैं, और छात्रों की परीक्षा अब सिर्फ अकादमिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और डिजिटल भी हो गई है।
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