
दादरी के चर्चित अखलाक मर्डर केस में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है।
सूरजपुर कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने की यूपी सरकार की याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।
कोर्ट की टिप्पणी साफ है— जिन तर्कों का सरकार ने पहले विरोध किया, उन्हीं को अब केस खत्म करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
क्या था अखलाक मर्डर मामला?
28 सितंबर 2015 की रात, यूपी के दादरी के बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।
आरोप था कि अखलाक के परिवार ने गाय का बछड़ा चोरी कर मारा। अफवाह के बाद गांव के युवकों की भीड़ उनके घर पहुंची। अखलाक को घर से घसीटकर बाहर निकाला गया। और बेरहमी से पीटकर मार डाला गया। यह मामला देशभर में Mob Lynching और Rule of Law पर बहस का प्रतीक बन गया था।
सरकार ने केस वापसी की अर्जी क्यों दी?
Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी सरकार ने केस वापस लेने के लिए वही तर्क पेश किए—
- गवाहों के बयानों में विसंगतियां
- आरोपियों की संख्या को लेकर अलग-अलग बयान
- गवाह और आरोपी एक ही गांव के निवासी
यही दलीलें 2017 में आरोपियों ने जमानत के लिए दी थीं, जिनका उस समय राज्य सरकार ने कड़ा विरोध किया था।
2017 बनाम 2025: तर्क वही, स्टैंड बदला
2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनीत और अरुण ने कहा था कि अखलाक की पत्नी इकरामन और बेटी शाइस्ता ने शुरू में उनके नाम नहीं लिए।
कोर्ट ने तब कहा था— “Merit पर टिप्पणी किए बिना, यह जमानत का मामला बनता है”

लेकिन अब, 15 अक्टूबर 2025 को यूपी सरकार ने उन्हीं दलीलों के आधार पर केस खत्म करने की मांग कर दी। यही बात कोर्ट को नागवार गुजरी।
कोर्ट का साफ संदेश
कोर्ट ने माना कि गवाहियों में कथित विरोधाभास। पहले ही न्यायिक जांच का हिस्सा रह चुके हैं, और इन्हें आधार बनाकर केस खत्म नहीं किया जा सकता
यानी— “कानून की नजर में याददाश्त बदली जा सकती है, रिकॉर्ड नहीं।”
सभी आरोपी पहले ही जमानत पर
रिकॉर्ड्स के अनुसार:
- पुनीत और अरुण के बाद
- शिवम, गौरव, संदीप, भीम, सौरभ, हरिओम, विशाल, श्रीओम, विवेक और रूपेंद्र
- सभी को समानता के आधार पर जमानत मिल चुकी है
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मामला खत्म हो गया।
राजनीति में यू-टर्न आम हैं, लेकिन जब कानूनी तर्क भी यू-टर्न लें, तो अदालत याद दिलाती है— “स्टैंड बदले जा सकते हैं, स्टैंडर्ड नहीं।”
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