कुर्सी की चालें और कागज़ी कमल: BJP में अंदरूनी चुनाव का महासंग्राम

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

लोकतंत्र का असली मज़ा तब आता है जब चुनाव सिर्फ जनता नहीं, नेता भी लड़ते हैं — और वो भी पार्टी के अंदर।
भाजपा, जिसे आमतौर पर चुनावी मशीन कहा जाता है, अब खुद को अपग्रेड कर रही है — “Version: अध्यक्ष 2025” की तैयारी जोरों पर है।

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इस बार मैदान में कोई विपक्ष नहीं, पर मुकाबला फिर भी ज़ोरदार है — काग़ज़ों की जंग, फ़ॉर्म की कुश्ती और राज्य चुनाव अधिकारियों की कुर्सी दौड़ शुरू हो चुकी है।

तो आइए, जानते हैं कैसे केंद्र ने कुछ वरिष्ठ नेताओं को राज्यों का “मुख्य चुनाव पर्यवेक्षक” बना भेजा है, और कैसे यह पूरी कवायद राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी की अगली किस्त का हिस्सा है। क्योंकि जब पार्टी का अंदरूनी लोकतंत्र सजता है, तब असली राजनीति परदे के पीछे शुरू होती है।

सबको वोट नहीं, कुछ को नोटिस — BJP का अंदरूनी मतदाता सूची का खेल!

जब जनता वोटिंग से थक चुकी हो, तो पार्टी के अंदर चुनाव का मौसम आता है। BJP ने अब महाराष्ट्र, उत्तराखंड और बंगाल में राज्य चुनाव अधिकारियों की ब्रह्मा नियुक्तियाँ कर दी हैं। मत पूछिए कैसे चुने गए – शायद जिनके पास ज्यादा फ़ॉर्म और कम फॉर्मलिटीज़ थीं।

चुनाव अधिकारी या पार्टी के इनविजिबल कैप्टन?

  • किरण रिजिजू को महाराष्ट्र भेजा गया — शायद उन्हें अब गेटवे ऑफ इंडिया से गेटवे ऑफ पावर की ओर रवाना कर दिया गया है।

  • हर्ष मल्होत्रा उत्तराखंड संभालेंगे — पहाड़ों में ऊँचाई नापने का अब संगठनात्मक प्रयास।

  • रविशंकर प्रसाद बंगाल के मोर्चे पर — कोर्टरूम की बहस से निकलकर वोटर रजिस्टर पर नज़र!

नड्डा जी का एक्सटेंशन एक्सपायर: अब नया चेहरा चाहिए!

जेपी नड्डा को 2023 में जाना था, लेकिन 2024 की चुनावी EMI के कारण उन्हें एक्सटेंड किया गया। अब पार्टी को चाहिए एक नया अध्यक्ष, लेकिन इस बार चुनाव EVM से नहीं, “फॉर्म भरकर और फ़ोन उठाकर” होगा।

14 राज्य हुए रेडी, बाकी VIP वेटिंग में

अब तक 14 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव हो चुके हैं, लेकिन यूपी, एमपी, गुजरात जैसे राज्यों में काम अब भी “Pending Review” पर है।

संविधान कहता है – 19 राज्यों का टारगेट पूरा करो, फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष को कुर्सी दो।

रणनीति बोले तो? क्षेत्रीय संतुलन + चुनावी परफॉर्मेंस + दिल्ली की मौन स्वीकृति

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, अगला अध्यक्ष कोई सुपरहीरो नहीं होगा, बल्कि, जिसने पिछले चुनाव में जीत दिलाई हो, जो राज्यीय जाति समीकरणों में फिट बैठता हो और सबसे ज़रूरी – दिल्ली की आंखों में आंख मिलाए बिना भी सब समझ जाए।

ये संगठन चुनाव नहीं, अगली कुर्सी की रिहर्सल है

भाजपा के अंदरूनी चुनाव, दिखते तो बहुत ‘संवैधानिक’ हैं – लेकिन असल में ये नेतृत्व की स्क्रीनिंग टेस्ट है।

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