खनन है कि खत्म ही नहीं होता! नेता, ट्रक और थप्पड़ की त्रिवेणी में डूबा यूपी

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर ज़मीन का मामला गरम है, लेकिन इस बार ज़मीन सिर्फ ज़र नहीं उगल रही, थप्पड़ भी बरसा रही है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने X (ट्विटर नहीं, अब X है साहब!) अकाउंट से सरकार पर तंज कसा है, “क्या मुख्यमंत्री को पता है कि खनन का खाका इतना विस्तृत है या फिर सब कुछ ‘डिफॉल्ट मोड’ में चल रहा है?”

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विधायक का कॉल, SDM की ‘काल’ और लोकतंत्र की ताल

मामला बड़ा दिलचस्प है। एक बीजेपी विधायक जी ने SDM साहब को फोन किया – वो सीज ट्रक छोड़ने की ‘विनती’ कर रहे थे। लेकिन SDM ने कॉल नहीं उठाया।

अब भैया, लोकतंत्र में फोन न उठाना भी ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ माना जाता है। और फिर क्या? SDM साहब को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया – एक जोरदार थप्पड़ से। पुलिस वालों के साथ भी ‘मौखिक संवाद’ हुआ और ट्रक को आज़ादी मिली।

FIR की रचना: नाम विधायक का नहीं, लेकिन स्टाइल सब समझ गए

SDM के ड्राइवर ने FIR दर्ज करवाई। चार नामजद और 25-30 ‘आकस्मिक देशभक्त’ आरोपियों के नाम शामिल हैं। लेकिन विधायक जी का नाम मिस हो गया… शायद टाइपो हो गया होगा। या फिर “पद की गरिमा” ने स्याही को सूखने नहीं दिया।

बुंदेलखंड: खनन का बेताज बादशाह

उत्तर प्रदेश में अवैध खनन एक राष्ट्रीय खेल बन चुका है।
बुंदेलखंड तो जैसे ‘खनन महोत्सव’ का स्थायी आयोजन स्थल है।
नदियों का दोहन, पर्यावरण की मार, और इंसानों का लालच – सब मिलकर प्रकृति को चीर रहे हैं।

चंबल जैसी संरक्षित नदियाँ भी अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। कहीं ऐसा न हो कि नदियाँ खुद कोर्ट में PIL डाल दें।

मुख्यमंत्री को खबर है या ‘साइलेंट मोड’ में हैं?

अखिलेश यादव का सवाल सीधा है – “क्या मुख्यमंत्री योगी जी को खनन माफिया का खेल पता है या फिर सब कुछ ‘नॉटिफिकेशन ऑफ’ कर रखा है?”

अगर पता है और फिर भी कुछ नहीं हो रहा, तो शासन का ईमान संकट में है। और अगर नहीं पता, तो शासन की निगरानी प्रणाली ICU में है।

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राज्य में शासन चल रहा है या शासन को चलाया जा रहा है, ये तय करना मुश्किल होता जा रहा है। यह घटना सिर्फ थप्पड़ का मामला नहीं, यह सत्ता और सिस्टम के बीच बढ़ती दूरी की गूंज है। जब ट्रक छोड़ने के लिए चुने हुए प्रतिनिधि जोर लगाते हैं और सिस्टम झुक जाता है, तब जनता को समझ आ जाता है – असली ‘खनन’ सिर्फ मिट्टी का नहीं, लोकतंत्र का भी हो रहा है।

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