
गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह ने समाजवादी पार्टी से निष्कासन के बाद तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि यह पार्टी अब समाज की नहीं, ‘समाप्त’ की वकालत कर रही है। पार्टी पर आरोप लगाते हुए बोले कि सनातन धर्म और प्रभु श्रीराम के नाम से भी उन्हें एलर्जी हो गई है। अब अगर किसी नेता ने राम का नाम लिया, तो टिकट नहीं — टिकट कट!
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प्रभु श्रीराम कहना क्या अब गुनाह हो गया है?
राकेश प्रताप का सीधा सवाल — “क्या प्रभु श्रीराम कहना अब गुनाह बन गया है?” उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी तुच्छ राजनीति के चलते अब सनातन धर्म पर हमले कर रही है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “मैं सनातन में जन्मा हूं, और वही मेरा संस्कार है। उसे छोड़ना मतलब आत्मा को छोड़ना।
लोहिया जी की पार्टी का वैचारिक ‘विलय’?
उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. राममनोहर लोहिया खुद रामायण मेले की बात करते थे। लेकिन आज की समाजवादी पार्टी अपने ही संस्थापक विचारों से भटक गई है। राकेश प्रताप बोले: “अब ये लोहिया की नहीं, लोभ की पार्टी बन गई है।” लोहिया जी ऊपर से देख रहे होंगे — “रामायण मेला कहाँ गया ?”
राम मंदिर जाना मना, तो फिर किस मंदिर में जाएं?
राकेश प्रताप ने खुलासा किया कि समाजवादी पार्टी अपने नेताओं को राम मंदिर में दर्शन करने से भी रोक रही है। यह प्रतिबंध न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि वैचारिक पतन की मिसाल है। उन्होंने इसे “वैचारिक दिवालियापन” करार दिया — यानी पार्टी अब भावनाओं की EMI भी नहीं भर पा रही!
सनातन बनाम सियासत का नया मोड़
राकेश प्रताप सिंह का बयान सिर्फ एक राजनीतिक रिएक्शन नहीं, बल्कि एक वैचारिक चुनौती भी है। उन्होंने सनातन को राजनीति का मुद्दा नहीं, अपनी पहचान बताया। अब देखना यह है कि यह ‘राम बनाम राजनीति’ की बहस समाजवादी पार्टी के भीतर कितनी गहराई तक जाती है।