
दिल्ली के ओखला इलाके में अवैध निर्माणों के ध्वस्तीकरण को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई तक रोक लगा दी है। इस फैसले से स्थानीय लोगों को अस्थायी राहत मिली है, जिनके आशियाने डीडीए की कार्रवाई के निशाने पर थे।
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विधायक अमानतुल्लाह का आरोप: डीडीए का “पिक एंड चूज़” रवैया
ओखला से आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा,
“हमारे इलाक़े को बने 40 साल हो चुके हैं। डीडीए गलत रिपोर्टिंग कर रही है और चुनिंदा मकानों को निशाना बना रही है।”
उन्होंने दावा किया कि यह कार्रवाई “पिक एंड चूज़” के आधार पर की जा रही है, जो असंवैधानिक और गैर-न्यायसंगत है।
डीडीए की नोटिस कार्रवाई और खसरा नंबर 279
7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को निर्देश दिया था कि वह ओखला गांव के खसरा नंबर 279 में अवैध निर्माण के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई करे। इसके बाद डीडीए और दिल्ली सरकार ने 15 दिन का नोटिस जारी किया।
इस नोटिस के आधार पर ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शुरू की जानी थी, लेकिन याचिका के चलते इस पर रोक लग गई है।
“लोगों ने खून-पसीने से बनाया है आशियाना”
विधायक अमानतुल्लाह ने कोर्ट के फैसले पर संतोष जताते हुए कहा,
“लोगों ने ये घर बड़ी मेहनत से बनाए हैं। इसे बनाने में ज़माना लगता है और सरकार कुछ मिनटों में उजाड़ने चली आती है।”
उन्होंने उम्मीद जताई कि जुलाई में सुनवाई के बाद उन्हें पूरी राहत मिलेगी।
DDA की ओर से क्या कहा गया?
डीडीए ने इस क्षेत्र में निर्माण को अवैध और अतिक्रमण की श्रेणी में बताया है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के तहत की जा रही थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई को जुलाई तक टालना यह दर्शाता है कि स्थानीय निवासियों की बातों को भी सुना जाना आवश्यक है।
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ओखला का यह मामला विकास बनाम मानवाधिकार के बीच संतुलन की एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
जहां एक ओर डीडीए कानून का पालन कर रही है, वहीं दूसरी ओर लोग 40 साल पुराने आशियानों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई इस संघर्ष का निर्णायक मोड़ बन सकती है।