अली ख़ान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत, SIT जांच के आदेश

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

सोशल मीडिया पर भारत-पाक संघर्ष और महिला सैन्य अधिकारियों से जुड़ी पोस्ट के चलते गिरफ्तार किए गए अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. अली ख़ान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत दे दी है। साथ ही, हरियाणा पुलिस को जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) बनाने का आदेश दिया गया है।

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क्या है मामला?

18 मई 2025 को हरियाणा पुलिस ने प्रो. अली ख़ान को गिरफ़्तार किया था
गिरफ्तारी की वजह बनीं थीं सोशल मीडिया पोस्ट, जिनमें उन्होंने कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह से प्रेस ब्रीफिंग की बात की थी—जो भारत-पाक संबंधों के संदर्भ में आईं थीं।
शिकायत सोनीपत के निवासी योगेश ने की थी, जिसके आधार पर दो समुदायों में नफ़रत फैलाने की धाराओं में मामला दर्ज किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

“दो ऑनलाइन पोस्टों की विषयवस्तु को देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि जांच पर रोक ज़रूरी है, लेकिन निष्पक्षता के लिए SIT ज़रूरी है।”

सुप्रीम कोर्ट बेंच

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे 24 घंटे के भीतर एक तीन सदस्यीय SIT गठित करें, जिसकी अध्यक्षता IG या उससे ऊपर के अधिकारी करें और दो सदस्य SP रैंक के हों। इन तीन में से एक महिला आईपीएस अधिकारी अनिवार्य हों।
SIT में हरियाणा और दिल्ली के अधिकारी शामिल नहीं होंगे।

अंतरिम ज़मानत की शर्तें क्या हैं?

कोर्ट ने प्रो. अली ख़ान को अंतरिम ज़मानत देते हुए कुछ कड़े निर्देश भी दिए:

  • याचिकाकर्ता पासपोर्ट CJM सोनीपत को सौंपेगा

  • वह जांच में पूरा सहयोग करेगा

  • वह विवादित पोस्ट या भारत-पाक संघर्ष पर कोई भी राय व्यक्त नहीं करेगा

  • ऑनलाइन लेखन करेगा, न कोई बयान

कोर्ट ने कहा कि यह ज़मानत जांच की सुविधा के लिए दी जा रही है, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नहीं।

कौन हैं प्रो. अली ख़ान महमूदाबाद?

  • वे अशोका यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं।

  • इतिहास, इस्लामी राजनीति और भारत-पाक रिश्तों पर गहराई से लेखन करते हैं।

  • वे पूर्व नवाब महमूदाबाद खानदान से ताल्लुक रखते हैं और सांस्कृतिक बहसों में सक्रिय आवाज़ माने जाते हैं।

इस केस ने फिर से फ्री स्पीच बनाम राष्ट्रहित की बहस को हवा दी है। सुप्रीम कोर्ट का SIT गठन का आदेश इस बात की ओर इशारा करता है कि न्याय केवल गिरफ्तारी या पोस्ट के आधार पर नहीं हो सकता, बल्कि निष्पक्ष जांच से ही सच्चाई सामने आनी चाहिए

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