
ईरान की राजनीति और मानवाधिकारों के बीच टकराव एक बार फिर सुर्खियों में है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नरगिस मोहम्मदी को खामेनेई सरकार ने दोबारा गिरफ्तार कर लिया है। यह गिरफ्तारी उस अस्थायी रिहाई के कुछ ही दिनों बाद हुई है, जो उन्हें 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भूख हड़ताल के बाद मिली थी।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह कार्रवाई असहमति की आवाज़ को दबाने की एक और कोशिश है।
कैसे हुई गिरफ्तारी?
नरगिस के पति तागी राहमानी के मुताबिक, सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें जबरन पकड़कर घसीटा और एक अज्ञात स्थान पर ले जाकर बंद कर दिया। सरकार की तरफ से इस गिरफ्तारी पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है—जो खुद में कई सवाल खड़े करता है।
नोबेल शांति पुरस्कार भी नहीं बना ढाल
52 वर्षीय नरगिस मोहम्मदी को 2023 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। यह सम्मान उन्हें ईरान में महिलाओं के अधिकार, बच्चों की सुरक्षा और महसा अमिनी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के लिए दिया गया।
विडंबना देखिए— नोबेल पुरस्कार उन्हें जेल में रहते हुए मिला, जिसे उनके परिवार ने रिसीव किया।
श्रद्धांजलि सभा बनी गिरफ्तारी की वजह?
मशहद के गवर्नर हसन होसैनी के अनुसार, नरगिस को एक दिवंगत मानवाधिकार वकील की श्रद्धांजलि सभा से गिरफ्तार किया गया।
बताया जा रहा है कि नरगिस बिना हिजाब पहुंचीं। भीड़ को संबोधित किया। नारे लगवाए। ईरान में यह सब करना आज भी “अपराध” माना जाता है।
सर्जरी के बाद भी जेल, जान पर खतरा
पिछले साल जेल में रहते हुए नरगिस को दिल का दौरा पड़ा था। उनकी बड़ी सर्जरी हुई थी और डॉक्टरों ने साफ कहा था— “उन्हें दोबारा जेल भेजना जानलेवा हो सकता है।”
लेकिन ईरानी सरकार के लिए आवाज़ से बड़ा कुछ नहीं।

13 बार गिरफ्तारी, 36 साल जेल
- अब तक 13 बार गिरफ्तार
- जिंदगी के 36 साल जेल में
- 100 से ज्यादा कोड़े
- फिर भी आवाज़ नहीं रुकी
यही वजह है कि नरगिस मोहम्मदी आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि Resistance का Symbol बन चुकी हैं।
ईरान की दूसरी महिला नोबेल विजेता
- शिरीन एबादी (2003)
- नरगिस मोहम्मदी (2023)
20 साल के अंतर से नोबेल जीतने वाली ये दोनों महिलाएं ईरान में न्याय और बराबरी की लड़ाई का चेहरा हैं।
ईरान में ऐसा लगता है— “नोबेल शांति पुरस्कार भी बेल नहीं, सिर्फ तारीख बदलता है।”
नरगिस मोहम्मदी की गिरफ्तारी यह साबित करती है कि ईरान में असहमति आज भी अपराध है। नोबेल पुरस्कार, अंतरराष्ट्रीय दबाव और स्वास्थ्य चेतावनियाँ—कुछ भी खामेनेई सरकार को नहीं रोक सका।
अब सवाल दुनिया से है— कब तक सिर्फ बयान, और कब होगा एक्शन?
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