
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग ने हर तरफ हलचल मचा दी है। 121 सीटों पर हुए मतदान में करीब 3.75 करोड़ वोटरों में से 64.66% ने वोट डालकर बिहार के चुनावी इतिहास में नया रिकॉर्ड बना दिया।
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने बताया कि अभी कुछ बूथों से रिपोर्ट आनी बाकी है, इसलिए आंकड़ा 70% तक जा सकता है।
अब सवाल उठता है — इतनी बंपर वोटिंग का मतलब क्या है?
क्या ये सत्ता विरोधी लहर है या फिर बिहार की जनता का नया राजनीतिक आत्मविश्वास?
बंपर वोटिंग: एंटी-इनकमबेंसी या नया बिहारी मूड?
पारंपरिक चुनावी विश्लेषण कहता है — “जब वोटिंग बढ़े, तो समझो सरकार डगमगाई।” लेकिन बिहार की तस्वीर कुछ और दिखा रही है।
कि नीतीश कुमार के खिलाफ हल्की नाराजगी ज़रूर है, पर ‘लहर’ जैसी बात नहीं। बल्कि ये मतदान बिहार की सामाजिक चेतना में आए बदलाव का संकेत है।
महिला वोटरों ने मचाई धूम
बिहार की महिला शक्ति इस बार वोटिंग बूटों की रानी बन गई। सुबह से ही लंबी कतारों में महिलाएं अपने अधिकार का प्रयोग करती दिखीं।
राजनीतिक संपादक शशि शेखर के अनुसार, सरकार द्वारा ₹10,000 की प्रोत्साहन राशि और आत्मनिर्भर योजनाओं ने
महिलाओं में ‘वोट का मूल्य’ बढ़ाया है। उन्होंने कहा — “पहले महिलाएं पुरुषों के साथ जाती थीं, अब पुरुष उनके साथ जा रहे हैं।”
‘वोट चोरी’ पर जनता की जागरूकता
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने बिहार में मताधिकार जागरूकता को नई धार दी। लोगों में यह भाव आया कि “अब वोट कोई नहीं चुराएगा।” चुनाव आयोग की पारदर्शिता और बूथ मॉनिटरिंग ने भी रिकॉर्ड तोड़ मतदान में बड़ी भूमिका निभाई।

युवाओं और EBC की ताकत — ‘हम भी मैदान में हैं’
युवाओं ने इस बार नेताओं के पोस्टरों से नहीं, EVM के बटन से अपनी बात रखी। NDA की ‘जंगलराज वापसी’ वाली चेतावनी का असर युवाओं पर नहीं पड़ा। मोकामा, धानुक, मल्लाह और तांती समुदाय के वोटरों ने पहली बार इतने आक्रामक ढंग से वोट डाला।
तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और मुकेश सहनी की अपीलों ने इस वर्ग में नई ऊर्जा भरी है।
बिहार के चुनावी इतिहास में नया अध्याय
इतिहास में पहली बार मतदान को लेकर इतनी उत्सुकता दिखी। ये सिर्फ एक इलेक्शन नहीं, बल्कि बिहार के मतदाताओं का ‘राजनीतिक पुनर्जागरण’ है। अब नतीजे चाहे जो हों, पर ये साफ है कि बिहार की जनता अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका में है।
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