
मध्य पूर्व के तनावपूर्ण माहौल में, एक बार फिर शांति की टेबल पर बैठने की कोशिश हो रही है। मिस्र और क़तर की सक्रिय मध्यस्थता से इसराइल और हमास के बीच चल रही वार्ता के पहले दौर को “सकारात्मक माहौल” में समापन बताया गया है।
मिस्र की सरकारी खुफिया एजेंसी से जुड़े अल-क़ाहिरा न्यूज़ चैनल के मुताबिक, वार्ता में अब तक की बातचीत में बंधकों और क़ैदियों की रिहाई को लेकर गंभीरता से काम हुआ है।
बंधकों और क़ैदियों की रिहाई: अगला बड़ा कदम?
इसराइल में बंद फिलिस्तीनी क़ैदी और हमास के कब्जे में इसराइली बंधक, दोनों ही पक्षों के लिए संवेदनशील मुद्दा हैं।
यही कारण है कि इस बार की वार्ता में मुख्य फोकस रहा:
“कैसे दोनों पक्षों के मानवीय मुद्दों को प्राथमिकता देकर डील आगे बढ़ाई जाए।”
मिस्र और क़तर के प्रतिनिधि दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे पर संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
कौन-कौन है मध्यस्थता में?
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मिस्र: पारंपरिक रूप से हमास और इसराइल के बीच पुल का काम करता रहा है।
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क़तर: हमास के साथ करीबी संपर्क, आर्थिक मदद और राजनीतिक प्रभाव।
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अमेरिका: रणनीतिक रूप से इसराइल के साथ और शांति प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा रहा।
इस त्रिकोणीय मध्यस्थता से उम्मीद की जा रही है कि एक स्थाई समाधान की नींव रखी जा सकती है।

इसराइल हाई अलर्ट पर: बरसी से पहले सतर्कता
भले ही वार्ता की खबरें सकारात्मक हों, लेकिन ज़मीनी हालात अब भी नाज़ुक हैं। इसराइली सेना अलर्ट पर है, खासकर हमास हमले की सालगिरह के मद्देनज़र।
“हम शांति की कोशिश करते हैं, लेकिन सुरक्षा की अनदेखी नहीं कर सकते।”
— इसराइल डिफेंस फोर्स का बयान
क्या वाकई सकारात्मक है माहौल? या फिर कूटनीतिक चाय-पानी?
हालांकि सरकारी मीडिया “सकारात्मक माहौल” की बात कर रहा है, परंतु सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह वार्ता एक वास्तविक समाधान की ओर बढ़ेगी? या फिर यह एक राजनयिक फोटो ऑप बनकर रह जाएगी?
“मध्य पूर्व की शांति वार्ताओं की खासियत यही है — सब ‘बात’ करते हैं, ‘काम’ बाद में होता है।”
आग बुझाने की कोशिश या केवल राख फूँकना?
फिलहाल की बातचीत में संकेत आशाजनक हैं। अगर बंधकों और क़ैदियों की रिहाई पर सहमति बनती है, तो यह युद्ध विराम की ओर पहला बड़ा क़दम साबित हो सकता है।
पर असली सवाल यही है:
क्या राजनीतिक इच्छाशक्ति, ज़मीनी हालात से टकरा पाएगी?