लद्दाख में बवाल: राज्य का दर्जा मांगते छात्रों ने किया हंगामा

Ajay Gupta
Ajay Gupta

लद्दाख में आंदोलन ने अब सिर्फ़ नारेबाज़ी की शक्ल नहीं, सीधा सड़क पर showdown ले लिया है। लेह की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का गुस्सा गर्म चाय की तरह उबल पड़ा — और किसी ने दूध नहीं डाला!

दो महिला प्रदर्शनकारी बेहोश, आंदोलन और भड़का

प्रदर्शन का तापमान तब और बढ़ गया जब दो महिला छात्राएं, अंचुक और अंचुक डोलमा, बेहोश होकर गिर पड़ीं।
उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया — लेकिन इससे पहले आंदोलन इमोशनल कार्ड से सियासी फायरक्रैकर बन चुका था।

“हमारी बहनों को कुछ हुआ तो चुप नहीं बैठेंगे” — ये लाइन किसी लद्दाखी स्क्रिप्ट से नहीं, ग्राउंड रियलिटी से आई है।

बीजेपी दफ्तर पर ‘पोलिटिकल पत्थरबाज़ी’

हिंसक मोड़ तब आया जब सैकड़ों छात्र बीजेपी दफ्तर की ओर मार्च करते हुए सीधा पथराव करने लगे। सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद ‘सियासी चप्पल युद्ध’ शुरू हो गया।

RPF की गाड़ी बनी ‘ज्वलंत मुद्दा’

CRPF की गाड़ी जलने का दृश्य इतना ड्रामैटिक था कि अगला OTT वेब शो शायद “Burning Ladakh” ही हो। छात्रों ने पहले नारे लगाए, फिर पेट्रोल ढूंढा और फिर सीधा “गाड़ी जलाओ, गुस्सा दिखाओ” वाला एपिसोड चला दिया।

छात्र बोले: 6 अक्टूबर बहुत दूर है, जवाब अभी दो!

सरकार कह रही है, “हम 6 अक्टूबर को सुनेंगे” — लेकिन छात्रों ने साफ़ कहा है, “हम 6 घंटे भी नहीं रुकेंगे अगर सम्मान नहीं मिला।”

क्या है मांग? क्यों है हंगामा?

पूर्ण राज्य का दर्जा। छठी अनुसूची में शामिल करना (जिससे लद्दाख की जनजातीय संरचना और पहचान को संवैधानिक संरक्षण मिले)

छात्रों का कहना है कि 2019 के बाद से लद्दाख को सिर्फ़ Union Territory बना देने से अधिकार छीने गए हैं, विकास नहीं मिला।

स्थिति फिलहाल नियंत्रण में, लेकिन लद्दाख का मूड आउट ऑफ कंट्रोल

स्थानीय प्रशासन और आर्मी ने मोर्चा संभाल लिया है। हालांकि माहौल अब केवल “शांतिपूर्ण” नहीं, बल्कि “संवेदनशील” और “किसी भी पल फट सकता है” वाला हो गया है।

छठी अनुसूची की जगह छटपटाहट मिल रही है

सरकार अगर सोच रही है कि लद्दाख को सिर्फ़ “स्वीट स्माइली मॉड्यूल” से मैनेज कर लेगी, तो छात्र अब “सियासी दहाड़ मोड” पर स्विच कर चुके हैं।

अब लेह की सड़कें सिर्फ़ टूरिज़्म पोस्टर में नहीं, न्यूज़ हेडलाइंस में भी आ गई हैं — वो भी हेडलाइन के फ्लेमिंग फॉन्ट में!

“पहाड़ शांति के लिए जाने जाते थे, अब अधिकारों के लिए गरज रहे हैं।”

दिल्ली, थोड़ा सुन लो — लद्दाखी सिर्फ़ मफलर नहीं ओढ़ते, ज़रूरत पड़ी तो आक्रोश भी ओढ़ लेते हैं।

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