
असम एक बार फिर बाढ़ की गंभीर चपेट में है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) के ताज़ा अपडेट के मुताबिक, 6 जिलों में 22,000 से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। जबकि गुवाहाटी शहर इस बार बड़ी तबाही से बाल-बाल बच गया, ग्रामीण असम की हालत बेहद खराब है।
कहाँ-कहाँ बर्बादी फैली है? – जिलावार अपडेट
1. गोलाघाट: सबसे अधिक प्रभावित ज़िला
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12,004 लोग प्रभावित, अब तक की 2 मौतें
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हलमोरा तुप में तटबंध टूटा, जिससे पानी ने गांवों को घेरा
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NDRF व SDRF ने 27 नावें तैनात कीं, 1,800+ लोगों और मवेशियों को बचाया गया
2. बिश्वनाथ: पुल और तटबंध ढहे
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5,931 लोग प्रभावित
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बालिजान में तटबंध टूटने और पुलिया गिरने से तेंगाबारी और अमागुरी में हालात खराब
3. सोनितपुर: मवेशियों का सबसे बड़ा नुकसान
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704 सीधे प्रभावित ग्रामीण, लेकिन 39,000 को राहत सहायता मिली
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33,000+ पशुओं की मृत्यु, और मत्स्य पालन को भी भारी नुकसान
4. कार्बी आंगलोंग: 2,500+ लोग संकट में
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सीमित क्षेत्र में बाढ़, लेकिन आवागमन और रहन-सहन प्रभावित
5. नागांव: कलियाबोर में 218 लोग प्रभावित
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स्थिति नियंत्रित, पर कृषि और मछली पालन को नुकसान
6. कछार: 73 गांव डूबे, 600+ बेघर
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सोनाई ब्लॉक में भारी बाढ़, 6 हेक्टेयर मत्स्य पालन क्षेत्र नष्ट
शहर बनाम गांव: गुवाहाटी की बचत, गांवों की बर्बादी
जहाँ ग्रामीण असम तटबंध टूटने, फसलों के बहने और विस्थापन से जूझ रहा है, वहीं गुवाहाटी शहर ने इस बार बड़ा नुकसान टाल दिया है।
हालांकि जुरीपार, सतगाँव, हाटीगाँव और सिजुबारी में जलभराव हुआ, लेकिन कोई जनहानि या बड़ा नुकसान नहीं हुआ।

राहत कार्य जारी: कितना और क्या मिला?
ASDMA और जिला प्रशासन द्वारा वितरित राहत सामग्री में शामिल हैं:
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568 क्विंटल चावल
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102 क्विंटल दाल
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26 क्विंटल नमक
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2,813 लीटर सरसों का तेल
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साथ ही शिशु आहार, स्वच्छता किट, तिरपाल, मच्छरदानी आदि।
113 राहत शिविरों में 6,838 लोग रह रहे हैं, जबकि 47,644 अन्य को शिविर के बाहर मदद पहुंचाई जा रही है।
पशुओं का संकट: चारा नहीं, इलाज जारी
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पशु चिकित्सा सेवाएं बढ़ाई गईं हैं, लेकिन चारे की भारी कमी और मवेशियों की मौतें चिंता बढ़ा रही हैं।
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यह संकट सिर्फ मानव नहीं, पशुधन और आजीविका दोनों को छू रहा है।
सरकार और जनता के लिए चेतावनी का मौका!
यह बाढ़ फिर दिखा रही है कि असम को जलवायु परिवर्तन, कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और असमान शहरी-विकास के खिलाफ मजबूत रणनीति चाहिए।
ग्रामीण इलाकों की लाचारी और शहरों की तैयारी के बीच संतुलन बनाना अब ज़रूरी है।
