
एक तरफ़ सरकारें पर्यटन बढ़ाने के दावे कर रही हैं, दूसरी तरफ़ लखनऊ की पहचान रूमी दरवाज़ा को बना दिया गया है कारों की आरामगाह। जी हां, अब गूगल मैप पर रूमी दरवाज़ा ढूंढिए, तो इतिहास नहीं, पार्किंग स्लॉट दिखता है।
जब धरोहर पर पार्क हुई गाड़ियाँ
उत्तर भारत की मशहूर मुगल और नवाबी वास्तुकला का प्रतीक रूमी दरवाज़ा अब चार पहियों के कब्जे में है।
जहाँ पहले टूरिस्ट्स फोटो खिंचवाते थे, अब लोग गाड़ी खड़ी करके ‘हॉर्न’ बजा रहे हैं। यानी, “जहाँ तहज़ीब खड़ी होती थी, अब वहाँ SUV खड़ी है!”
जनता ने कहा – ये ‘ब्यूटीफिकेशन’ नहीं, ‘बदतमीज़ी’ है
स्थानीय लोगों और इतिहास प्रेमियों का कहना है:
“शान-ए-अवध को पार्किंग बना देना क्या विकास है?
इससे अच्छा तो सड़क पर गाड़ी खड़ी कर लेते!”
स्मारक या Smart City Project का शिकार?
रूमी दरवाज़ा इसका ताज़ा उदाहरण है, जहाँ “फुटपाथ हटाओ, पार्किंग बनाओ” नीति पर अमल हुआ।
सेल्फी स्पॉट से बनी ‘स्लिपरी स्लोट’
जहाँ पहले खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते थे, अब वहाँ कार धूल उड़ा रही है, शायद ट्रैफिक पुलिस चालान काट रही है और पर्यटक… रास्ता बदल रहे हैं!
Heritage से Hospitality तक की गिरावट का नाम है — “विकास”!
पुरातत्व विभाग की मौन सहमति या मजबूरी?
रूमी दरवाज़ा ASI (Archaeological Survey of India) की संरक्षित धरोहरों में आता है। पर जब सवाल उठा कि “इस पर पार्किंग कैसे बनी?”, तो विभाग ने “हम जांच करेंगे” वाला पुराना रिकॉर्ड फिर से बजा दिया।


“इतिहास की कद्र नहीं, अब जगह चाहिए टायर को!”
“आपने वादा किया था विकास का, हमें उम्मीद थी रख-रखाव की… पर आपने तो रूमी दरवाज़े को बना दिया बंपर-टू-बंपर पार्किंग!”
लखनऊ की तहज़ीब, नवाबी अंदाज़ और ऐतिहासिक पहचान पर विकास की जेसीबी चला दी गई है। अब देखना ये है कि सरकार इस पर Action लेती है या Reaction का इंतज़ार करती है।
“फर्जी डिग्री वालों की शामत, योगी बोले – दाखिला अब जांच के बाद ही मिलेगा!”

