
जब 6.0 तीव्रता का भूकंप आधी रात को अफ़ग़ानिस्तान के कुनार और जलालाबाद जैसे क्षेत्रों को झकझोर गया, तो मिट्टी के घरों के साथ-साथ हज़ारों सपने भी मलबे में दब गए।
600 से अधिक लोगों की मौत, 1500 घायल – और सैकड़ों अब भी दबे हैं, लेकिन इससे भी ज़्यादा भारी खामोशी है – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर।
जहाँ जापान, तुर्किये, या यूक्रेन जैसे देशों में संकट आते ही 2 घंटे में मदद के जहाज़ रवाना हो जाते हैं, वहीं अफ़ग़ानिस्तान के लिए? सिर्फ शोक-संदेश, और वो भी ट्विटर पर।
Politics vs Humanity: तालिबान बहाना या बहाना इंसानियत का?
बिलकुल, अफ़ग़ानिस्तान में अब तालिबान की सत्ता है। पर क्या इंसान की जान लेने से पहले भूकंप ID कार्ड चेक करता है?
क्या मदद भेजने से पहले मेडिकल टीम को ये तय करना चाहिए कि जिसे जिंदा निकालना है, वो तालिबानी सोच रखता है या नहीं?
“किसी भी विदेशी सरकार ने अब तक मदद नहीं भेजी” — तालिबान विदेश मंत्रालय
तालिबान सरकार की मान्यता पर बहस हो सकती है, लेकिन जब बच्चे मलबे में दबे हों, तब बहस नहीं, बचाव ज़रूरी होता है।
Selective Sympathy का नया नक्शा
दुनिया की बड़ी ताक़तें — अमेरिका, यूरोप, यूएन — सब शांति से बैठीं हैं। शायद इसीलिए क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में तेल नहीं है, न गैस पाइपलाइन, और न ही “डेमोक्रेसी के नाम पर दखल” की कोई मज़बूरी।
तुर्किये में भूकंप? — हर देश की टीम ऑन द ग्राउंड।
अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप? — “हम स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं।”

कितनी अजीब बात है — इंसानियत का पासपोर्ट अब Visa Approval से जुड़ गया है।
संवेदनशीलता की गहराई: 10 किमी से नीचे
इस भूकंप की गहराई तो 10 किमी बताई गई है, लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि दुनिया की संवेदनशीलता उससे भी गहरी हो चुकी है – और अब दिखती ही नहीं।
रातों-रात लोग बेघर हो गए, बच्चे अनाथ हो गए, लेकिन गूगल न्यूज़ पर उनकी जगह अब भी Tech News और Football Scores हैं।
एक सच्चा सवाल: Geopolitics बड़ी या इंसान?
क्या हम इस मोड़ पर आ गए हैं जहाँ भूगोल, धर्म और सत्ता ये तय करेंगे कि किसे मदद मिलेगी और किसे नहीं?
क्या कोई इंसानी त्रासदी अब तभी ख़बर बनेगी जब वहाँ कैमरा फ्रेंडली सरकार हो?
अफ़ग़ानिस्तान सिर्फ एक भू-राजनीतिक केस स्टडी नहीं, वो एक ज़िंदा देश है – जहाँ लोग सिर्फ अफ़ग़ानी नहीं, इंसान भी हैं।
अफ़ग़ानिस्तान में 600+ की मौत, तालिबान बोले- कोई मदद नहीं आई
