
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने एक और डिप्लोमैटिक झटका दिया है, और इस बार निशाने पर है फिलिस्तीन। अमेरिका ने ऐलान किया है कि आने वाली UN जनरल असेंबली में PLO (फिलिस्तीन मुक्ति संगठन) और PA (फिलिस्तीनी अथॉरिटी) के किसी भी सदस्य को बैठक में आने की इजाजत नहीं मिलेगी।
जी हां, वीज़ा कैंसिल कर दिए गए हैं। और नए वीज़ा? “ना बाबा ना, पहले पुराना हिसाब तो क्लियर करो,” विदेश मंत्री मार्को रुबियो का बयान कुछ ऐसा ही था।
अमेरिका का दो टूक: “शांति चाहिए या शोऑफ?”
रुबियो बोले, “UN में बैठना है तो आतंकवाद से दूरी बनानी होगी। ये मीटिंग है, मिडिल ईस्ट का युद्ध क्षेत्र नहीं।”
उन्होंने आरोप लगाया कि PLO और PA शिक्षा तंत्र में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और “शांति की संभावनाओं को कमजोर कर रहे हैं” — ऐसा उन्होंने कहा, और शायद थोड़ा कड़क कॉफी पीकर बोला।
वीज़ा कैंसिलेशन नोटिस – “अभी नहीं तो कभी नहीं”
अमेरिकी सरकार ने साफ कर दिया है कि फिलिस्तीन से जुड़े प्रतिनिधियों को अब UN में स्वागत नहीं मिलेगा।
रुबियो के अनुसार:
“अगर आपको मीटिंग करनी है, तो पहले आतंकी विचारधारा से मीटिंग तोड़ो।”
“PLO को अमेरिकी क़ानून के अनुसार शिक्षा में आतंक को बढ़ावा देना बंद करना होगा।”
“PA को इंटरनेशनल मंचों पर देश की तरह खुद को पेश करने की कोशिशें छोड़नी होंगी।”
शांति वार्ता का नया नियम: “बैठक में वही आएगा, जो बम नहीं लाएगा”
अमेरिका अब फिलिस्तीनी संगठनों से वादों की वैलिडिटी चेक कर रहा है। उन्हें लग रहा है कि वादे तो होते हैं, लेकिन पूरे नहीं। जैसे स्कूल में कोई कहे, “कल होमवर्क ले आउंगा,” और फिर कल कभी आता ही नहीं।
इस फैसले का असर क्या होगा?
अमेरिका और फिलिस्तीन के बीच तनाव और बढ़ेगा
UN जनरल असेंबली में फिलिस्तीनी पक्ष की गैरमौजूदगी अंतरराष्ट्रीय बहस छेड़ेगी
अन्य मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया आने की संभावना
ट्रंप सरकार के चुनावी एजेंडे में यह ‘सख्त विदेश नीति’ के तौर पर पेश होगा
ट्रंप सरकार ने फिलिस्तीनी संगठनों को जो अल्टीमेटम दिया है, वो एक तरह से कहता है – ‘शांति लाओ, वरना शांति सम्मेलन में आने का हक मत मांगो’। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इस फैसले के गंभीर असर होंगे, लेकिन फिलहाल अमेरिकी पॉलिटिक्स में यह एक बड़ी रणनीतिक चाल मानी जा रही है।
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