
बिहार में चल रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जोरदार बहस हुई। कई याचिकाकर्ताओं ने इसे असंवैधानिक और अव्यवस्थित बताया।
कौन-कौन पहुँचे अदालत?
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वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे कानून के खिलाफ बताते हुए कहा कि ये प्रक्रिया लोगों के वोटिंग अधिकार को छीन रही है।
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चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने भी गहरी रिसर्च के साथ दलील पेश की और कहा कि इससे लाखों वोटर्स बाहर हो सकते हैं।
योगेंद्र यादव की चेतावनी:
“जैसे ही रजिस्ट्रेशन की जिम्मेदारी सरकार से लेकर नागरिकों पर डालते हैं, करीब 25% वोटर गायब हो जाते हैं।”
योगेंद्र यादव ने अदालत में दो ऐसे लोगों को पेश किया जिन्हें मृत घोषित कर दिया गया, जबकि वे जीवित हैं और वोट डालना चाहते हैं।
EC की प्रतिक्रिया:
चुनाव आयोग की ओर से पेश एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने इन दलीलों को “ड्रामा” बताया और कहा:
“टीवी के लिए अच्छा है, लेकिन इससे प्रक्रिया में बाधा आती है।”
उनका कहना था कि लोगों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, ना कि सिर्फ आलोचना।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुनवाई कर रही पीठ – जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची – ने संतुलित रुख अपनाया। उन्होंने कहा:
“अगर गलती अनजाने में हुई है, तो उसे सुधारा जा सकता है।”
क्या है SIR (Special Intensive Revision)?
SIR एक विशेष प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है – नाम जोड़े या हटाए जाते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या यह प्रक्रिया पारदर्शी, सुलभ और नागरिकों के हित में है?