मिथुन बोले – मैं ट्राइबल का दुलारा हूं, मिशन में जगह दो वरना मैं दिल्ली चलूंगा

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

मिथुन, यानी पूर्वोत्तर का शाही गोजातीय, जो जनजातीय किसानों की शान है, अब गांव-गांव नहीं, दिल्ली-दिल्ली तक चर्चा में है! कारण? केंद्र सरकार से मांग उठी है कि इसे राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) में शामिल किया जाए।

मिथुन: सिर्फ जानवर नहीं, ट्राइब्स का ब्रांड एंबेसडर

यह कोई मामूली गाय-भैंस नहीं, अरुणाचल और नागालैंड का राज्य पशु है, जो लोगों की परंपरा, भोज, बारात और बरसात – सबका हिस्सा है।

2019 की जनगणना के अनुसार, भारत में 3.9 लाख मिथुन हैं, जिनमें से 91% अकेले अरुणाचल में
यानी मिथुन बोले – “मेरा घर नॉर्थ ईस्ट, बाकी दुनिया मेहमान।”

वैज्ञानिक बोले – रिसर्च हो, फंडिंग हो, नीति में एंट्री हो!

ICAR-NRCM के डायरेक्टर डॉ. गिरीश पाटिल ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कहा, “मिथुन को मिशन से बाहर रखना, फॉर्महाउस से बैल हटाने जैसा है। यह पारिस्थितिक और आर्थिक दोनों रूप से जरूरी है।”

इससे प्रजनन, आहार, स्वास्थ्य, वैल्यू एडिशन पर रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। और नॉर्थ ईस्ट के दूर-दराज इलाकों में किसानों की आजीविका भी मजबूत होगी।

“जनसंख्या घट रही है… मिशन में न लाए तो गायब हो जाऊंगा” – मिथुन का दर्द

जोमलो मोंकू मिथुन किसान महासंघ और अध्यक्ष तडांग तमुत बोले –“मिथुन कोई यमराज का वाहन नहीं है, ये हजारों परिवारों की लाइफलाइन है।ये संस्कृति का गौरव, और ग्रामीण GDP का बूस्टर है।”

उन्होंने अवैज्ञानिक पद्धतियों और वध से घटती आबादी पर चिंता जताई।

सिर्फ FSSAI से सर्टिफिकेट और FAO में नाम से क्या होगा? मिशन में नहीं आए तो क्या फायदा?

हालांकि FSSAI ने इसे खाद्य पशु घोषित किया, और FAO की DAD-IS लिस्ट में भी शामिल है,
लेकिन किसान बोले – “नाम से पेट नहीं भरता! मिशन में पैसा दो, योजना दो, और वैज्ञानिक इलाज दो!

राजनीतिक एंगल: अब रिजिजू और तापिर गाओ पर निगाहें

अब गेंद पहुंची है केंद्रीय नेताओं की पाले में – क्या किरन रिजिजू और तापिर गाओ इस पशु के लिए संसद में आवाज़ बुलंद करेंगे?

या मिथुन बोलेगा –“सारे नेता दिल्ली चले गए, मैं अब भी जंगल में अकेला पड़ा हूं!” 

मिशन में आएगा, तो मिलेगा मिशन का मकसद!

अगर मिथुन को NLM में शामिल किया गया, तो…

वैज्ञानिक पालन होगा
 किसानों को मिलेगा इंफ्रास्ट्रक्चर
 बाजार मूल्य में वृद्धि
 पूर्वोत्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगा जैविक बूस्ट

क्या केंद्र सरकार इस ‘देसी बाइसन’ को “गाय-बकरी वाली योजनाओं” से ऊपर उठाएगी?

या फिर मिथुन खुद बोलेगा –

“बाबा रे बाबा, गाय के नाम पर सबकुछ, मेरे नाम पर – सिर्फ घास!”

गुरुग्राम तै बणग्या ठेक्यां का बादशाह – बाकी जिल्यां नै बणाया ‘ड्राय डे

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