
हरियाणा के पंचकूला जिले से आई यह खबर दिल दहला देने वाली है। सेक्टर 27 स्थित एक मकान में एक ही परिवार के 7 सदस्यों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। यह परिवार मूल रूप से उत्तराखंड के देहरादून से था और हाल ही में पंचकूला में रह रहा था।
राजा भइया डर गए क्या? पत्नी और बेटी ने खोली पोल, CBI जांच की मांग
मृतकों में प्रवीण मित्तल (42), उनकी पत्नी, माता-पिता, दो बेटियां और एक बेटा शामिल हैं। इस त्रासदी के पीछे की वजह अब धीरे-धीरे सामने आ रही है और परिवार के ससुराल वालों के खुलासों ने सभी को चौंका दिया है।
कर्ज ने छीना चैन, व्यापार ने डुबोया सबकुछ
प्रवीण मित्तल ने पहले टूर एंड ट्रैवल्स का कारोबार शुरू किया था। उम्मीदों से भरे इस बिजनेस ने धीरे-धीरे उन्हें करोड़ों के कर्ज में डुबो दिया। बाद में उन्होंने हिमाचल के बद्दी में स्क्रैप का व्यवसाय भी शुरू किया, लेकिन वहां भी घाटा ही हाथ लगा।
बैंक ने फैक्ट्री, फ्लैट और गाड़ी तक जब्त कर ली। परिवार की आर्थिक स्थिति इस कदर खराब हो गई थी कि गुज़ारे के लिए प्रवीण टैक्सी चलाने को मजबूर हो गए थे।
‘प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर’ बना दिया गया, समाज से कट गया परिवार
प्रवीण मित्तल पर बैंकों और उधारदाताओं का करीब 15 से 20 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया था। समय के साथ वे अदालत द्वारा प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर (PO) घोषित कर दिए गए और पंचकूला छोड़कर देहरादून चले गए।
करीब 5-6 साल तक उनका परिवार रिश्तेदारों से भी कट गया था। ससुरालवालों के मुताबिक, उन्होंने प्रवीण से वर्षों से कोई संपर्क नहीं रखा था क्योंकि वे हर किसी से कटा-कटा रहना पसंद करने लगे थे।
आखिरी शब्दों में भाई का नाम लिखा, छोड़ा सुसाइड नोट
पुलिस जांच के अनुसार, प्रवीण ने एक सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमें लिखा है कि उनका अंतिम संस्कार उनके ममेरे भाई संदीप अग्रवाल करें। बताया जा रहा है कि संदीप से प्रवीण की कुछ दिन पहले ही फोन पर बात हुई थी।
इस नोट में उन्होंने अपनी असफलताओं और भारी कर्ज का ज़िक्र किया है। यह भी माना जा रहा है कि पूरे परिवार ने एक साथ आत्महत्या करने का फैसला लिया था, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
आखिर क्यों मरते हैं पूरे परिवार? सवाल समाज से भी है
यह हादसा सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज और सिस्टम के लिए भी एक चेतावनी है। क्या कर्ज का इतना बोझ किसी को जीने नहीं देता? क्या समाज में इतनी व्यवस्था नहीं कि मदद का रास्ता निकल सके?
जब सिस्टम साथ न दे, कर्ज ज़िंदगी निगल जाए और उम्मीदें दम तोड़ दें – तब सिर्फ मौत बचती है? पंचकूला की यह घटना सरकार, बैंकिंग सिस्टम और समाज तीनों से सवाल कर रही है।