
अक्सर कहा जाता है कि न्याय देर से मिले, तो भी ठीक है… पर जब न्याय देरी से नहीं, बल्कि जान-बूझकर दबाया जाए? ज्योति की कहानी, एक अमेरिकी महिला की नहीं, बल्कि एक भारतीय बेटी की है, जिसने अपने पिता और दो भाइयों को बचाने की कोशिश में 26 साल गंवा दिए।
1999 से शुरू हुई थी लड़ाई — लेकिन सिस्टम तब भी सोया था
1999 में ज्योति ने ठाणे पुलिस और मुंबई कमिश्नर को रिपोर्ट दी — कि उसके 87 वर्षीय पिता और दो छोटे भाई शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण का शिकार हैं।
“लेकिन पुलिस क्या करती? इंसाफ देने के बजाय, मिल गई एक चुप्पी की चार्जशीट।”
2003 में पिता की मौत हो गई — और वो भी एक संदिग्ध और अमानवीय हालात में। 2003 से 2008 तक वो FIR, अपील और जांच आदेशों में उलझती रही — मंत्री बदलते रहे, लेकिन जांच फाइलें वही की वही धूल खाती रहीं।
जांच आदेश होते रहे, पुलिस ‘अज्ञानी’ बनी रही!
2005 से 2008 के बीच, गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक के आदेश, ठाणे की वर्तक नगर पुलिस और मुंबई पुलिस कमिश्नर ने ठंडे बस्ते में डाल दिए। “सरकार बदली, लेकिन अफसरों का ‘सिस्टम’ वही रहा — फ़र्ज़ को फ़ाइलों में मारते हुए!”
फर्ज़ी FIR, अमेरिकी दूतावास की मदद और FBI की एंट्री!
2008 में, उल्टा ज्योति पर झूठा मामला दर्ज कर लिया गया, ताकि वो भारत से बाहर ना जा सके। अमेरिकी दूतावास को हस्तक्षेप करना पड़ा, और तभी से यह मामला राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय हो गया। FBI रिपोर्ट, पीएमओ निर्देश और IAS राजीव गौबा का नोटिस — सब कुछ मिलने के बावजूद, IPS अफसर विवेक फणसालकर और DCP अंबुरे ने जांच दबा दी।
और जो कहा था, वही हुआ — दो मौतें, एक मानसिक अस्पताल
ज्योति ने 1999 में चेताया था — अगर जांच नहीं हुई तो तीनों को खो दूँगी। वो डर साकार हुआ — पिता की मौत (2003), भाई परेश की मौत, और भाई मनीष मानसिक अस्पताल में कैद। “और न्यायपालिका का जवाब? — ‘ज्योति एक दशक बाद नींद से जागी है।’”
क्या किसी महिला के 26 साल की दहाड़ को ‘नींद’ कह देना अब नया न्याय है?
एक आखिरी उम्मीद — सुप्रीम कोर्ट की SLP सुनवाई!
30 मई 2025 को SLP सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट हो चुकी है। ज्योति को 12 जून से पहले अमेरिका लौटना है — और मनीष अब अस्पताल से बाहर है, जो खुद खतरे में है क्योंकि बाकी सब या तो मरे हैं, या मरवा दिए गए।
“अगर अब CBI जांच नहीं हुई, तो इस देश की न्याय प्रणाली को मुंह छिपाना चाहिए!”
क्या इंसाफ मांगना अब अपराध है? क्या महिला होना गुनाह है? क्या अमेरिका का नागरिक होना भारत में ‘देशद्रोह’ की श्रेणी में आता है? क्या भ्रष्ट IPS, IAS और जज इस सिस्टम से बड़े हो गए हैं?
अब मत छिपाओ फाइलें, अब न्याय दो!
इस केस को सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज मत समझिए — ये एक महिला की 24 साल की मातृत्व, व्यवसाय, रिश्तों और जीवन की बलि की कहानी है।