
हर साल की तरह सावन आया। नेता लोग भक्तिभाव से ट्वीट कर रहे थे। लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने सिर्फ बधाई नहीं दी, एक पूरी बहस छेड़ दी — जोतिर्लिंग की लोकेशन पर।
उन्होंने ट्वीट में सावन की शुभकामनाएं दीं — और फोटो चिपका दी निर्माणाधीन केदारनाथ मंदिर की।
अब लोगों का सवाल है:
“जोतिर्लिंग तो शाश्वत होता है। उसकी तस्वीर CGI या 3D मॉडल से नहीं बदली जा सकती।”
क्या जोतिर्लिंग का स्थान बदला जा सकता है?
ठीक वैसे जैसे काबा की लोकेशन पवित्र है और अटल — वैसे ही हिंदू धर्म में 12 जोतिर्लिंगों की जगहें तय हैं और हजारों सालों से वही हैं।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि:
क्या अखिलेश यादव नए युग के डिजिटल शंकराचार्य बनने की तैयारी कर रहे हैं?
या AI Generated मंदिर तस्वीर से मतदाता समूह में आध्यात्मिक FOMO पैदा कर रहे हैं?
‘डिजिटल धर्म’ का नया अध्याय?
राजनीति में मंदिर दिखाना पुरानी बात है — लेकिन निर्माणाधीन मंदिर को जोतिर्लिंग बताकर पेश करना, ये नया ट्रेंड है।
विपक्ष ने तंज कसा, “क्या अगली बार नक्शे में नया ‘काशी विश्वनाथ’ भी बना देंगे?”
ट्वीट में तीर्थ और ट्रोल दोनों शामिल थे
अखिलेश के ट्वीट पर प्रतिक्रियाएं बंट गईं:
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समर्थकों ने कहा: “देखो, नेता सिर्फ समाजवादी नहीं, शिवभक्त भी हैं!”
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विरोधियों ने पूछा: “कहीं ये ‘वोट बैंक केदारनाथ यात्रा’ तो नहीं?”
ट्वीट में मंदिर की तस्वीर ऐसी थी, जैसे “वीएफएक्स शिवलिंग दर्शन” हो रहा हो।
क्या अखिलेश शंकराचार्य मोड में हैं?
अब यह मान लेना थोड़ा ज़्यादा होगा कि अखिलेश ‘स्वयंभू’ शंकराचार्य बनने निकल पड़े हैं।
लेकिन राजनीतिक संकेतों की भाषा में — यह हिंदू प्रतीकों से जुड़ने की एक कोशिश ज़रूर है।
सावन में शिवभक्ति दिखाना कोई अचंभा नहीं, लेकिन लोकेशन और लैंडमार्क पर बहस का कारण बनना थोड़ा क्रिएटिव है।
पंडित बोले: ये पवित्र स्थल कोई पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन नहीं
धार्मिक विद्वानों ने इसे ‘धार्मिक भ्रम’ फैलाने वाला बताया।
“जोतिर्लिंग सिर्फ एक मंदिर नहीं, वह स्थल है जहां देवत्व अवतरित होता है। यह नया निर्माण है, मूल स्थल नहीं।”
मतलब, पिक्सेल से पूजा नहीं होती — पर ट्रेंडिंग ज़रूर हो सकता है।
राजनीति में मंदिर अब GPS से नहीं, DPS (धार्मिक पोज़ स्कोर) से चलता है
अखिलेश यादव का यह ट्वीट सिर्फ सावन की बधाई नहीं, बल्कि सॉफ्ट हिंदुत्व का एक डिजिटल अध्याय लगता है।
जोतिर्लिंग की लोकेशन भले न बदले, पर राजनीति में नीयत और नरेटिव दोनों इंस्टाग्राम स्टोरी पर बदल जाते हैं।
“जब मंदिर की पिक्चर ही राजनीति का प्रसाद बन जाए, तो सवाल भी मूर्ति की नहीं, मूवमेंट की होती है।”