“जनता भूखी रहे, टैंक चलने चाहिए!” — पाकिस्तान बजट रॉकेट की रफ़्तार से

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

जब देश की 45% जनता भूख, बेरोजगारी और बदहाली से जूझ रही हो, तो सरकार क्या करती है? सीधा जवाब: 18% सेना का बजट बढ़ा देती है! जी हां, पाकिस्तान सरकार आज 2025-26 का बजट पेश करने जा रही है और खबरों के मुताबिक, रक्षा खर्च 2,500 अरब रुपये तक पहुंचाया जाएगा।

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क्या है बजट का असली गणित?

विवरण आंकड़ा
कुल कर्ज ₹76,007 अरब
घरेलू कर्ज ₹51,518 अरब
विदेशी कर्ज ₹24,489 अरब
गरीबी रेखा से नीचे जनता ~45%
सेना का प्रस्तावित बजट ₹2,500 अरब (18% वृद्धि)

सेना को बढ़ाओ, भूख को भूल जाओ?

सरकार के इस फैसले से ‘बंदूक पहले, रोटी बाद में’ वाली सोच एक बार फिर उजागर हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि रक्षा बजट बढ़ाने से:

  • जनता के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार की योजनाएं कटेंगी

  • कर्ज़ का ब्याज चुकाना और मुश्किल हो जाएगा

  • IMF जैसी संस्थाएं और सख्ती बरतेंगी

सरकार की सोच: “बॉर्डर सुरक्षित हो तो पेट भर ही जाता है?”

सरकार के प्रवक्ताओं का तर्क है कि “सुरक्षा पहले, सुख बाद में”। लेकिन सवाल ये है कि:

क्या एक भूखी, बेरोज़गार और कर्ज़ में डूबी जनता सुरक्षा से खुश हो सकती है?

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पाकिस्तान का बजट एक बार फिर जनता नहीं, जिन्ना की बंदूक के नाम पर तैयार हो रहा है। जब कर्ज़ का मीटर रॉकेट की स्पीड से दौड़ रहा हो, और जनता भूखी हो — तो टैंक का हॉर्सपावर बढ़ाना समझदारी नहीं, बल्कि ‘फौजी-फ्रॉड’ है।

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