तारीख: आज… क्योंकि दर्पण में बीता कल कभी नहीं दिखता। जब आईना बोल उठा: “तू कौन?” जब भी हम दर्पण के सामने खड़े होते हैं, तो लगता है जैसे सामने कोई है — एक हूबहू, एक साया, एक नकलची दोस्त… लेकिन वो हम नहीं है, सिर्फ हमारी “अनुमति से प्रतिबिंबित आत्म-छवि” है। और अगर ध्यान से देखो, तो उसका चेहरा हमसे ज़्यादा शांत होता है। शायद इसलिए कि उसे हमारी चिंता नहीं होती। तलवार चली, केक कटा, और बिहार की राजनीति में फिर से ‘लड्डू युद्ध’ शुरू! साइंस कहता है: बस…
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