संविधान बदले से का तीर मार लेब, जब जात-पात में ही उलझल रहब?

अब त सुनते-सुनते कान पक गइल, बाबू! “संविधान बदल देब!” “नई धारा ला देब!” “देश के दिशा पलट देब!” अरे हो!संविधान त हमरे बड़-बुजुर्ग लिख के दे गइलें, ऊ त कहेला—”सब बराबर हईं।” बाकिर हम का करत बानी?जात देख के दोस्ती, बिरादरी देख के वोटिंग, अउर इलाका देख के दुश्मनी! कोरिया हमसे बाद में आज़ाद भइल—आज देखीं उ कहाँ बा! हम? अबहिन भी कंचनपुरिया बनाम बेलभरिया में फँसल बानी। एसे पूछत हई—संविधान बदल के का एटलस रॉकेट उड़ाइब?जब दिमाग अबहिन भी जात-पात के दलदल में फँसल बा, तब त सोच बदलल ज़रूरी…

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