चुनौती बन गई एक नज़्म: क्यों ‘हम देखेंगे’ से हिल जाती हैं हुकूमतें?

“हम देखेंगे” — यह सिर्फ़ एक पंक्ति नहीं, एक संकल्प है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की यह नज़्म उन लफ़्ज़ों का संगम है जो सत्ता के अन्याय, शोषण और तानाशाही के ख़िलाफ़ आम आदमी की उम्मीद और संघर्ष को आवाज़ देती है। इंग्लैंड में कितनी दहाड़ेगी युवा टीम इंडिया? मौसम, पिच और विरोधी होंगे असली परीक्षा! क्यों डरती हैं हुकूमतें इस नज़्म से? क्योंकि यह कविता सीधे-सीधे ज़ुल्म के ढांचे पर वार करती है। इसमें कोह-ए-गिराँ जैसे प्रतीक हैं जो जुल्म को पहाड़ जैसा ठोस बताते हैं, और फिर कहते हैं…

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