भगवान शिव केवल सनातन धर्म के नहीं, बल्कि समस्त मानवता के आराध्य हैं। वे “अज्ञेय” हैं — जिनका कोई एक रूप नहीं, कोई एक मत नहीं। उनका स्वरूप समावेशी है। डमरू बजाते, जटाजूटधारी, तांडव करते शिव — वे किसी विशेष संप्रदाय के प्रतीक नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना के आधार हैं। शिव सबके क्यों हैं? शिव को कोई भी जात-पात पूछे बिना पूज सकता है। वो श्मशान में भी मिलते हैं और मंदिरों में भी। भांग चढ़ाते नागा भी उनके भक्त हैं और दीप जलाती गृहिणी भी। वो अघोरी के गुरु…
Read More