उत्तर प्रदेश हो या बिहार, जब कोई नेता जी राजनीति की दहलीज़ पर पहला कदम रखते हैं, तो उनका पहला पड़ाव होता है — अपनी बिरादरी का दरबार। वहीं पहुंचकर वह अपने “सामाजिक DNA” का हवाला देते हैं, और धीरे-धीरे ‘अपने लोग’ उन्हें अपना नेता मान लेते हैं। और फिर? शुरू होती है वो स्क्रिप्ट जो हर चुनाव में रिपीट होती है — सिर्फ़ पार्टी का नाम बदलता है। चंदा, चर्चा और चरित्र निर्माण का कॉम्बो पैक नेता जी धीरे-धीरे विरादरी में “धन विहीन संरचना” का हवाला देते हुए चंदा…
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