कभी सोचिए, अगर समाज में सब लोग मिल-जुलकर रहने लगें, जात-पात भूल जाएं, एक-दूसरे की शादी में जाकर दही-बड़ा खाएं — तो बेचारे जातिवादी नेताओं का क्या होगा? जो “आपसी खाई” को पुल नहीं, मुद्दा मानते हैं। दरअसल, उनके लिए सौहार्द वही चीज़ है जो क्रिकेट में बारिश — खेल बिगाड़ देती है! सरकारी नौकरी की खनक: 12वीं पास भूलें नहीं, SSC CHSL है सबसे खास! नफ़रत की दुकान: खुलती सुबह, जलती रात राजनीति में अब किसी नेता का ‘विजन’ नहीं, सिर्फ ‘डिवीजन’ मायने रखता है। इनकी सुबह ‘जाति विशेष…
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