
Bihar Assembly Election 2025 से पहले देश की राजनीति में हलचल मच गई है। Supreme Court ने Election Commission of India (ECI) को नोटिस जारी कर दिया है, और ये नोटिस मामूली नहीं है। कोर्ट ने पूछा है:
“आपके पास राजनीतिक पार्टियों के रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन का कोई स्ट्रॉन्ग सिस्टम है या बस हर कोई पार्टी खोल सकता है?”
PIL ने खोली पोल: “राजनीतिक दल लोकतंत्र को बर्बाद कर रहे हैं”
ये मामला उठा है एक Public Interest Litigation (PIL) के ज़रिए, जिसे सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर किया है।
PIL में कहा गया है कि आजकल कुछ लोग पार्टी बनाकर करोड़ों की ब्लैक मनी को व्हाइट कर रहे हैं। अपराधियों को पदाधिकारी बना रहे हैं। चंदा लेकर टिकट बेचने की दुकान चला रहे हैं।
एक्साम्पल के तौर पर, इनकम टैक्स ने दो राजनीतिक दलों — इंडियन सोशल पार्टी और युवा आत्मनिर्भर दल पर छापा मारा और 500 करोड़ की ब्लैक मनी बरामद की।
“राजनीति का अपराधीकरण रोकिए” – कोर्ट का अल्टीमेटम
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वो 4 हफ्तों के अंदर जवाब दे कि पार्टियों के रजिस्ट्रेशन के लिए क्या-क्या कड़े नियम हैं?
क्या पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्षता की शर्त लागू की जाती है? और क्या कोई रेगुलेशन सिस्टम है या नहीं?
साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि सभी रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को इस याचिका का पक्षकार बनाया जाए, जिससे उनकी भी राय सामने आए।
फर्जी पार्टियों से खतरे: सिर्फ नकली नहीं, खतरनाक भी
याचिका में कहा गया है कि भारत में सैकड़ों राजनीतिक पार्टियां केवल रजिस्टर होकर मौजूद हैं।
ये पार्टियां चुनाव नहीं लड़तीं, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी, फेक डोनेशन और कभी-कभी आपराधिक सिंडिकेट्स का हिस्सा बन जाती हैं।
“ये लोकतंत्र के लिए आतंक से कम नहीं हैं,” ऐसा याचिकाकर्ता का तर्क है।

बिहार चुनाव 2025 से क्या कनेक्शन?
बिहार जैसे राज्यों में चुनाव से पहले सैकड़ों “एक बार चलने वाली पार्टियां” रजिस्टर होती हैं। इनका उद्देश्य सिर्फ टिकट देना, चंदा लेना और बैकडोर से पॉलिटिक्स में एंट्री कराना होता है।
अब जब बिहार में चुनाव करीब हैं, सुप्रीम कोर्ट का ये रुख साफ करता है कि कोर्ट नहीं चाहती कि फर्जी पार्टियां लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करें।
कोर्ट का संदेश साफ: “लोकतंत्र मजाक नहीं है!”
सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस केवल चुनाव आयोग को नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र को एक जागरूकता का संकेत है।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह पार्टी रजिस्ट्रेशन को पारदर्शी बनाए। हर पार्टी की फाइनेंशियल एक्टिविटी पर नजर रखे और पॉलिटिक्स में एंट्री को merit-based बनाए, न कि सिर्फ पैसा और पहुंच के भरोसे।
क्या अब ‘पार्टी रजिस्ट्रेशन’ भी होगा सीरियस बिजनेस?
अब सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम के बाद भारत में पार्टी बनाना उतना ही आसान रहेगा जितना अब तक था?
या फिर हमें देखने को मिलेगा एक नया कानून, सख्त रजिस्ट्रेशन प्रॉसेस और राजनीति में असली चेहरों की वापसी?
बिहार चुनाव 2025 से पहले इस याचिका पर फैसला, पूरे देश की राजनीति को हिला सकता है।
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