RSS के 100 साल: गोडसे से भागवत तक, एक विचारधारा की विवाद यात्रा

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

“संघ” एक ऐसा शब्द है, जो किसी के लिए ‘संस्कृति का प्रहरी’ है, तो किसी के लिए ‘साजिशों का संरक्षक’। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत में एक सदी से अधिक समय से सक्रिय है — शाखाओं से लेकर सियासत तक, शिक्षा से लेकर संस्कृति तक, इसके प्रभाव की शाखाएं दूर-दूर तक फैली हैं। पर जितनी चर्चा इसकी ‘संघर्ष-गाथा’ की होती है, उतनी ही इसकी ‘संगठित-विवादों’ की भी।

नाथूराम गोडसे से लेकर अयोध्या आंदोलन, पाठ्यपुस्तक संशोधन से लेकर भागवत बनाम बीजेपी खींचतान — RSS ने हर दौर में खुद को ज़िंदा और ज़ोरदार बनाए रखा। लेकिन क्या एक सदी पुराना संगठन आज भी अपनी विचारधारा के मूल में वैसा ही है? या फिर अब ये बदलाव के भगवा चश्मे से देश को देख रहा है?

इस लेख में पढ़िए, कैसे RSS ने इतिहास के पन्नों पर कई बार अपने लिए एक खास हाशिया बनाया — कभी विवादों के जरिये, कभी विचारों के नाम पर।

“संघ को समझना है तो शाखा में जाइए” — लेकिन इतिहास को समझना हो, तो लेख पूरा पढ़िए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई थी — उद्देश्य था राष्ट्र निर्माण। परंतु शाखा में सूर्यनमस्कार करते-करते कब विचारधारा ने देश के विचारों को प्रभावित करना शुरू कर दिया, किसी को पता ही नहीं चला।
गांधीजी के शब्दों में कहें तो, “बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, संघ की शाखा में सबका स्वागत है… बस विचार पूछने मत लगिए।”

गोडसे कनेक्शन: “वो कभी संघ में था… या फिर नहीं?”

नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या की और आरोप संघ पर लगे। अदालत ने सीधा संबंध नहीं पाया, पर सियासी अदालतें तो जनता की होती हैं — वहां आज भी बहस जारी है।
संघ का जवाब: “वो गया था शाखा, पर नास्तिक निकला!”

प्रतिबंधों की तिकड़ी: “तीन बार बैन, फिर भी मैदान में”

1948: गांधी हत्या के बाद

1975: आपातकाल में

1992: बाबरी विध्वंस के बाद

संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगा, लेकिन हर बार यह ‘बॉबी देओल’ की तरह लौट आया — बिना बदले हुए, लेकिन पूरी तैयारी के साथ।

राम मंदिर आंदोलन: “वोट भी चाहिए, भावनाएं भी”

अयोध्या आंदोलन संघ के लिए टर्निंग पॉइंट था। कहावत बदल दी गई: “मंदिर वहीं बनाएंगे… और सत्ता भी वहीं लाएंगे।”

पाठ्यक्रम से विवाद तक: “इतिहास हटाओ, भविष्य सजाओ?”

एनसीईआरटी की किताबों से गांधी हत्या पर फोकस हटाना, इतिहास के “रीब्रांडिंग” जैसा है। विपक्ष बोला: “इतिहास मिटाया जा रहा है।”
संघ बोला: “इतिहास गढ़ा जा रहा है।”
सच क्या है, यह UPSC वाले ही तय करेंगे।

भागवत बनाम बीजेपी: “सेवक में भी Ego?”

जेपी नड्डा के बयान कि “भाजपा अब संघ पर निर्भर नहीं” ने हलचल मचा दी।
मोहन भागवत का जवाब आया:
“सेवक में अहंकार नहीं होना चाहिए।”
अंदरखाने जो हुआ, वो कैमरे में नहीं, कैबिनेट में दर्ज है।

100 साल और आगे: “संघ रहे न रहे, विचार रहेंगे”

आज जब RSS ने 100 साल पूरे कर लिए हैं, सवाल यही है:
क्या यह संगठन समय के साथ बदल रहा है, या बाकी देश संघ के हिसाब से ढल रहा है?

विवादों से घिरा विचार या विचारों से घिरा विवाद?

RSS एक ऐसा संगठन है जो तथ्यों, भावनाओं और विवादों के बीच टिका हुआ है। कोई इसे राष्ट्र का रक्षक मानता है, कोई विचारों का सेंसर।
पर एक बात तय है, RSS को आप अनदेखा नहीं कर सकते — चाहे आप शाखा में जाएं या ना जाएं।

“जो शाखा में नहीं गए, वो आलोचक बन गए। और जो चले गए, वो सरकार में आ गए!”

PM मोदी के कार्यक्रम में नीतीश कुमार की 38 सेकंड वाली मौन साधना

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