“नारे सड़क पर, हंगामा संसद में! PM मोदी पर बयान से मचा बवाल”

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कांग्रेस की एक रैली में कथित तौर पर अपशब्द कहे जाने का मामला सोमवार को संसद के भीतर तूफान बन गया।
सुबह जैसे ही लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्ष–सत्ता पक्ष के बीच इतना शोर मचा कि दोनों सदन स्थगित करने पड़े।
बात सड़क की थी, गूंज संसद तक पहुंच गई।

लोकसभा में किरेन रिजिजू का हमला

लोकसभा में भाजपा सांसद किरेन रिजिजू ने इस मुद्दे को उठाते हुए कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि राजनीतिक विरोध अलग बात है, लेकिन अपमानजनक भाषा लोकतंत्र को कमजोर करती है। रिजिजू ने याद दिलाया कि 2014 में भाजपा के एक सांसद ने आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था, जिस पर खुद पीएम मोदी ने तत्काल माफी मंगवाई थी।
उनका साफ कहना था— “हम विरोधी हैं, दुश्मन नहीं।”

“140 करोड़ के नेता का अपमान”: BJP का कांग्रेस से सवाल

रिजिजू ने कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि जिस रैली में यह नारे लगे, वहां कांग्रेस के शीर्ष नेता मौजूद थे। उन्होंने इसे “शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि “दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रधानमंत्री के लिए ऐसी भाषा, देश का अपमान है।”

BJP की मांग साफ रही— कांग्रेस नेतृत्व लोकसभा और राज्यसभा दोनों में माफी मांगे।

राज्यसभा में नड्डा का तीखा प्रहार

राज्यसभा में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस की रैली में लगे नारे उनकी सोच और राजनीतिक संस्कार को उजागर करते हैं।
उन्होंने सीधे तौर पर नेता प्रतिपक्ष और सोनिया गांधी से देश से माफी मांगने की बात कही। नड्डा बोले— “राजनीति का स्तर कांग्रेस ने वहां गिरा दिया है, जहां कल्पना भी नहीं की जा सकती।”

भाषण लोकतंत्र का हथियार होते हैं, लेकिन यहां नारे हथौड़ा बन गए।

कांग्रेस की ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ रैली में क्या हुआ?

यह पूरा विवाद रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई कांग्रेस की ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ रैली से जुड़ा है। इसी रैली में पीएम मोदी को लेकर ऐसे नारे लगे, जिन पर भाजपा ने कड़ा ऐतराज जताया। रैली में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे।

राहुल और प्रियंका के बयान, राजनीति का तीखा मोड़

राहुल गांधी ने मंच से आरएसएस और सरकार पर हमला करते हुए कहा कि “सच के साथ खड़े होकर हम मोदी–शाह और RSS की सरकार को हटाएंगे।”

वहीं प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार संसद में बहस से डरती है और जनता के मुद्दों से मुंह चुरा रही है। उनका आरोप था कि EVM और वोटों की चोरी पर बहस से सरकार पीछे हट रही है।

यह विवाद सिर्फ एक नारे या बयान का नहीं, बल्कि राजनीतिक भाषा और मर्यादा का है। एक तरफ सत्ता पक्ष प्रधानमंत्री के सम्मान की बात कर रहा है, तो दूसरी तरफ विपक्ष इसे अभिव्यक्ति और आक्रामक राजनीति से जोड़कर देख रहा है। सवाल यही है— क्या लोकतंत्र में तीखी बात जरूरी है, या तीखी भाषा?

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