
पप्पू यादव ने उन तमाम आलोचकों को चुप करा दिया जो सालों से तेजस्वी यादव की आलोचना करते रहे। चुनाव आयोग द्वारा तेजस्वी यादव को नोटिस भेजे जाने पर पप्पू यादव ने कहा कि यह “भाजपा की आवाज़ का आधिकारिक चैनल” बन गया है—जिसकी हर पोलिंग रणनीति भाजपा की लाइन पर चलती है।
उनका मज़ाकिया सवाल था:
“क्या आयोग अब अलाउद्दीन का चिराग बन गया है, जो जो चाहेगा वही होगा?”
राहुल गांधी और ‘गरीबों की आवाज़’
राहुल गांधी द्वारा बिहार में शुरू की गई ‘मत यात्रा’ को पप्पू यादव ने गरीबों की आवाज़ बताया और कहा— “हम गरीबों की आग में सडक़ पर उतर रहे हैं, और जहां कहीं जरूरत होगी, वहीं राहुल के साथ खड़े रहेंगे।”
वे स्पष्ट हुए कि गरीबों के वोटर अधिकार को कोई छीने नहीं देगा और उसके संघर्ष में उनकी भूमिका बराबर की होगी।
मंदिर नहीं वोट बैंक, ‘धर्म’ नहीं चुनावी चाल
जब पप्पू यादव से पूछा गया कि क्या सीतामढ़ी मंदिर के शिलान्यास में राजनीति नहीं है, तो उन्होंने कहा— “यह यात्रा धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि चुनावी वोट-बैंक बनाने की ज़रूरत पर निकाली गई है। चुनाव आते हैं तो धरम याद आता है, खत्म होते ही धरम को ‘फुरसत में भूल जाते’ हैं।”
उनका व्यंग्य था कि मां सीता वोट मांगने आती हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही ‘दर्शन भाव’ का घोंघा भी गायब हो जाता है।
राजनीतिक दृश्य: समीकरण बिगड़ा, पप्पू ने निभाई महारत
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तेजस्वी पर नोटिस पर पप्पू की काव्यात्मक आलोचना
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राहुल गांधी की यात्रा पर मिलाजुला धन्यवाद
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और सनातन धर्म की राजनीतिककरण पर कटु टिप्पणी
ये लाइनें दर्शाती हैं कि बिहार की राजनीति में मैच नहीं, माइंडगेम हो रहा है—और पप्पू यादव फिलहाल पेनल्टी कम, स्ट्राइक मार रहे हैं।
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पप्पू यादव ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा किया
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राहुल गांधी के नेतृत्व को गरीबों की उम्मीद बताया
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और सनातन धर्म का चुनावी इस्तेमाल करने पर भाजपा पर तीखा वार किया
इन भाषणों के बीच, बिहार की राजनीतिक राजनीति इस वक़्त जन संघर्ष vs वोट बैंक के बीच संतुलन बिठाने की कवायद कर रही है।
रेट्रो रिव्यू गीत गाया पत्थरों ने: जब पत्थरों को भी मोहब्बत का सुर मिल गया…