
भारतीय मूल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी 16 जुलाई 2025 को होनी थी, लेकिन ऐन वक्त पर राहत की खबर आई — फिलहाल फांसी टाल दी गई है!
पर क्या ये वक़्त केवल सजा टालने का है या सिस्टम को आईना दिखाने का?
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सना सेंट्रल जेल: जहां इंसाफ नहीं, सिर्फ इंतज़ार मिलता है
यमन की राजधानी सना में स्थित यह जेल सिर्फ एक कैदखाना नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का कब्रिस्तान बन चुकी है।
1993 में बनी यह जेल अब हूती विद्रोहियों के कब्जे में है। न कानून, न संविधान — यहां चलता है सिर्फ “हूती हुक्म”।
कैदियों के लिए खाना नहीं, फांसी की तैयारी ज़रूर है
जेल की हालत किसी डरावने कालकोठरी जैसी है।
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न पर्याप्त भोजन
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न साफ पानी
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न इलाज की सुविधा
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ह्यूमन राइट्स? यहां वो एक मज़ाक है!
11 साल से हूती नियंत्रण: अब जेल नहीं, एक राजनीतिक पिंजरा
2014 से जेल हूतियों के कब्जे में है। अब ये सिर्फ अपराधियों का ठिकाना नहीं, बल्कि विरोधियों को ‘ठिकाने’ लगाने की जगह बन गई है।
पत्रकार, एक्टिविस्ट, यहां तक कि कलाकार भी सड़ते हैं इन्हीं दीवारों में।
निमिषा की कहानी: गलती, हत्या या मजबूरी?
निमिषा पर यमन के नागरिक तलाल अब्दुल की हत्या का आरोप है। लेकिन क्या ये एक साजिश थी?
क्या हालात ने उसे उस अंजाम तक पहुंचाया? यह बहस आज भी जिंदा है।
जेल की हकीकत: तस्वीर लेना मना है, पर चीखें हर दीवार में दर्ज हैं
सना सेंट्रल जेल में कोई बाहरी इंसान कैदियों से मिल नहीं सकता।
फोटो? रिकॉर्डिंग? ये सब गुनाह हैं।
जेल के बाहर लगे सशस्त्र गार्ड और अंदर चलती ‘मौन प्रताड़ना’ इस जेल को “मध्य पूर्व का ग्वांतानामो” बना देती है।
सना जेल पर हमले भी हुए हैं
सऊदी अरब और अमेरिका के हमले सना जेल को कई बार निशाना बना चुके हैं। लेकिन इन हमलों के बीच सबसे ज़्यादा कुचले जाते हैं वो निर्दोष कैदी — जो किस्मत के कैदी हैं।
अब क्या आगे?
निमिषा प्रिया की फांसी भले टली हो, लेकिन सवाल जिंदा हैं:
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क्या भारत सरकार उसे वापस ला पाएगी?
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क्या हूती प्रशासन इंसाफ़ देगा?
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क्या यमन का तंत्र राजनीति से ऊपर उठेगा?
या फिर ये फांसी महज़ टली हुई मौत बनकर रह जाएगी?