
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने एक बार फिर इसराइल को अपने बयानों के निशाने पर लिया है। इस्तांबुल में आयोजित एक कूटनीतिक सम्मेलन के दौरान अर्दोआन ने आरोप लगाया कि इसराइल मध्य पूर्व में शांति के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बन चुका है।
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हमला नहीं, बातचीत पर ‘धमाका’
राष्ट्रपति अर्दोआन ने बिन्यामिन नेतन्याहू की सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने 13 जून को ईरान के खिलाफ जो हमला किया, उसका उद्देश्य सिर्फ सैन्य नहीं, राजनीतिक भी था।
“परमाणु वार्ता की छठे दौर की बैठक से पहले यह हमला करना महज़ इत्तेफ़ाक नहीं था,” उन्होंने कहा।
“यह प्रयास था उस वार्ता को पटरी से उतारने का, जो शांति की उम्मीद जगा रही थी।”
“खुलेआम लूटपाट” और अस्थिरता फैलाने के आरोप
इस सम्मेलन में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची की उपस्थिति ने अर्दोआन के बयानों को और वज़नदार बना दिया। उन्होंने इसराइल की हालिया कार्रवाइयों को “खुलेआम लूटपाट” की संज्ञा दी और कहा कि नेतन्याहू सरकार क्षेत्रीय अस्थिरता की वजह बनती जा रही है।
क्या तुर्की-ईरान की नज़दीकियों से बदलेंगे समीकरण?
इस बयानबाज़ी के दौरान ईरान और तुर्की के बीच बनते संबंधों को भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नए मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। अर्दोआन और ईरान के अधिकारियों की एक मंच पर मौजूदगी ये संकेत दे रही है कि इस क्षेत्र में अब राजनयिक गुटबाज़ी और भी गहरी होने वाली है।
कूटनीति की चिंगारी या युद्ध की आग?
जहां एक ओर दुनिया मध्य पूर्व में शांति की उम्मीद कर रही है, वहीं नेतन्याहू और अर्दोआन के बीच की बयानबाज़ी इस संभावना को कमजोर करती जा रही है।
क्या यह सिर्फ बयान है, या आने वाले दिनों में कुछ बड़ा कूटनीतिक मोड़ सामने आएगा?
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