नेपाल में Zen Z आंदोलन बना लोकतंत्र का रियल्टी चेक- मंत्रियों के इस्तीफे

अजमल शाह
अजमल शाह

नेपाल की सड़कों पर गूंज रहे थे सवाल, लेकिन सरकार के कानों में ईयरप्लग लगे थे। सोशल मीडिया बैन से भड़की Zen Z Generation ने देश की राजधानी से लेकर गांवों तक विरोध का ऐसा नारा लगाया कि 19 लोगों की जान चली गई। लेकिन सरकार अभी भी सवालों की बजाय WiFi ऑफ करने में व्यस्त दिखी।

“मेरी आत्मा अब कुर्सी नहीं संभाल सकती” — मंत्री रामनाथ अधिकारी

जब लोग मर रहे थे, तब सरकार मौन थी — लेकिन कृषि एवं पशुधन मंत्री रामनाथ अधिकारी की आत्मा जाग उठी।
उन्होंने कहा:

“मुझे दुख है कि हम लोकतंत्र को तानाशाही की कोचिंग में भेज चुके हैं। अब मेरी आत्मा कुर्सी उठाने से मना कर रही है।”

साफ शब्दों में कहें तो – मंत्री जी ने सरकार से ज्यादा अपनी नैतिकता को सीरियसली लिया

‘लोकतंत्र’ में शांतिपूर्ण विरोध = लाठीचार्ज!

सरकार की परिभाषा में लोकतंत्र का मतलब ये होता दिख रहा है:
“शांतिपूर्वक विरोध करोगे? चलो एक लाठी का स्वाद चख लो!”
प्रदर्शनकारियों का कसूर सिर्फ इतना था कि वो सवाल पूछ रहे थे — लेकिन सरकार के लिए सवाल पूछना आजकल सेडिशन जैसा लग रहा है।

सोशल मीडिया बंद कर, सरकार ने सोचा सब चुप हो जाएगा!

अरे भैया! ये Zen Z है, Gen X नहीं। इंस्टाग्राम बंद करोगे तो ये लोग IRL (In Real Life) पर लाइव आ जाएंगे।

सरकार की सोच:

“बंद कर दो, दिमाग ठंडा हो जाएगा।”

Zen Z का जवाब:

“अंकल, ये तो बस ट्रेलर था, अब असली मूवी शुरू करेंगे!”

गृह मंत्री का पहले ही Exit हो चुका है

इससे पहले गृह मंत्री रमेश लेखक भी इस्तीफ़ा दे चुके हैं। मतलब, कैबिनेट में अब धीरे-धीरे सीटें खाली हो रही हैं — और शायद अगला मंत्री Zomato डिलीवरी बॉय से पूछेगा कि ‘कहां अप्लाई करें’

फुटबॉल मैच कैंसिल, लेकिन ‘पॉलिटिक्स की किक’ चालू है

Nepal vs Bangladesh फुटबॉल मैच को कैंसिल कर दिया गया। ANFA (Nepal Football Association) ने कहा:

“खिलाड़ी मैदान में उतरने को तैयार हैं, लेकिन इस बार फुटबॉल नहीं, संविधान की बॉल पर किक लगेगी।”

सवाल ये नहीं कि इस्तीफा दिया… सवाल ये है कि अब तक रुके क्यों थे?

रामनाथ अधिकारी ने फेसबुक पर ही इस्तीफा डाल दिया।
क्योंकि…

“PM साहब मिलने का टाइम नहीं दे रहे थे। शायद वो भी Reels में व्यस्त होंगे।”

Zen Z सिर्फ बटन नहीं दबाती, सत्ता भी हिला सकती है

Nepal की जनता अब चुप नहीं है। वो जानती है कि इंटरनेट, बोलने की आज़ादी और सरकार से जवाब मांगना कोई गुनाह नहीं — ये उनका हक है।

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