
नागालैंड में आरक्षण समीक्षा पर सियासी पारा चढ़ गया है। राज्य सरकार के 6 अगस्त के कैबिनेट निर्णय को 5 जनजातियों की समिति (CORRP) ने पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह 12 जून के प्रस्ताव की “पुनरावृत्ति” मात्र है, जो पिछड़ी जनजातियों (BT) कोटे से जुड़ी उनकी मांगों का समाधान नहीं करता।
कौन हैं ये 5 जनजातियाँ? और क्यों हैं नाराज़?
CORRP यानी Committee on Review of Reservation Policy — नागालैंड की पाँच प्रमुख जनजातियों का संयुक्त मंच है, जो राज्य की 48 साल पुरानी आरक्षण नीति की समीक्षा की माँग कर रहा है। उनका कहना है कि वर्तमान व्यवस्था में कुछ जनजातियों को अनुचित लाभ मिल रहा है जबकि अन्य की उपेक्षा हो रही है।
सरकार ने क्या किया है? और क्यों भड़की समिति?
राज्य सरकार ने आरक्षण समीक्षा आयोग में CNTC (Central Nagaland Tribes Council), ENPO (Eastern Nagaland Peoples’ Organisation) और TUN (Tenyiemi Union Nagaland) जैसे नागरिक समाज संगठनों को शामिल किया है।
CORRP का आरोप है कि:
“इन संगठनों को शामिल करना एकतरफा और पक्षपातपूर्ण है। यह समिति की वैध मांगों को दरकिनार करने की कोशिश है।”
“काल्पनिक आँकड़े”, “गुमराह करने वाली बयानबाज़ी” — प्रवक्ता पर तीखा हमला
समिति ने प्रेस बयान में सरकार के प्रवक्ता की उस मीडिया ब्रीफिंग पर भी सवाल उठाए जिसमें उन्होंने मौजूदा आरक्षण संरचना का बचाव करते हुए “काल्पनिक आंकड़ों” का हवाला दिया।
CORRP का कहना है कि प्रवक्ता ने आयोग की रिपोर्ट को जनगणना के संभावित नतीजों से जोड़कर भ्रम फैलाया।
प्रेस विज्ञप्ति में तीखा बयान था:
“प्रवक्ता की टिप्पणी ने हमारे आंदोलन का अपमान किया है।”
अब आगे क्या? संयुक्त बैठक जल्द
CORRP ने घोषणा की है कि वह जल्द ही 5 जनजातियों के शीर्ष निकायों के साथ बैठक करेगा और आगे की रणनीति तय की जाएगी। संभावित है कि:
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धरना/प्रदर्शन की घोषणा हो
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जन समर्थन जुटाने के लिए अभियान चलाया जाए
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मामला कोर्ट तक पहुँचे
क्या वाकई ज़रूरी है आरक्षण नीति की समीक्षा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद केवल नीति की समीक्षा का नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान, न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और सत्ता संतुलन का मुद्दा बन चुका है।
अब देखना यह है कि राज्य सरकार इस ‘आरक्षण बनाम अधिकार’ के टकराव को कैसे सुलझाती है।
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