
मुंबई का आजाद मैदान इन दिनों आंदोलन का अखाड़ा बना हुआ है, और इस बार मैदान में सिर्फ नारे नहीं, नीति निर्धारण की पटकथा लिखी जा रही है।
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है। नेता मनोज जरांगे पाटिल के साथ महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट उप-समिति की बैठक के बाद कई अहम मांगों पर सहमति बन चुकी है।
सरकार ने इन 6 बड़ी मांगों को माना
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हैदराबाद गजट लागू करना:
आंदोलन की मूल मांग मानी गई — जिससे मराठा समुदाय को कुनबी किसान श्रेणी में जोड़ा जा सकेगा। -
मृतकों के परिजनों को आर्थिक सहायता:
आंदोलन में जान गंवाने वालों के परिवारों को सरकारी मुआवज़ा मिलेगा। -
सरकारी नौकरी की पेशकश:
मृत आंदोलनकारियों के परिजनों को सरकार नौकरी भी देगी। -
आंदोलनकारियों पर दर्ज केस होंगे वापस:
कानून की मार झेल रहे प्रदर्शनकारियों को राहत मिलेगी। -
जाति जांच लंबित मामलों को मान्यता:
जाति सत्यापन में अटके मराठाओं को बड़ी राहत। -
शासन निर्णय पर अमल का भरोसा:
सरकार ने आश्वासन दिया है कि फैसलों को लिखित में लाया जाएगा।
मनोज जरांगे बोले: “ये तो ट्रेलर है, फिल्म अभी बाकी है…”
ये मांगें रहीं अनसुलझी
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सातारा गजट लागू करने की समयसीमा:
जरांगे की 1 महीने की डेडलाइन वाली मांग को सरकार ने ठुकरा दिया है। -
मराठा-कुणबी के मुद्दे पर स्पष्ट निर्णय:
सरकार ने कहा कि इसपर शासन निर्णय बनाने के लिए 2 महीने का समय दिया जाएगा।
यानी “थोड़ा ठहरो… लोकतंत्र में जल्दबाज़ी नहीं चलती।”
क्या है हैदराबाद गजट?
यह एक ऐतिहासिक सरकारी दस्तावेज़ है जो यह प्रमाणित करता है कि मराठा समुदाय को ‘कुनबी किसान’ वर्ग में गिना गया था। इस वर्ग को ओबीसी कोटे में आरक्षण मिलता है। इसे लागू करने से मराठा समुदाय को आरक्षण का कानूनी आधार मिल सकता है।
अब आगे क्या?
सरकार ने “बातचीत से हल निकालने” की नीति अपनाई है, लेकिन मनोज जरांगे “Time-Bound Action” की मांग पर अड़े हुए हैं।
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8 सप्ताह की नई टाइमलाइन सेट की गई है
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सभी मांगें पूरी नहीं हुईं, लेकिन अब लड़ाई नीति बनाम समय की है।
“सरकार झुकी है, हारी नहीं — जरांगे डटे हैं, थके नहीं”
मराठा आंदोलन अब “समझौतों के कागज़” से निकलकर “पॉलिसी के नोटिफिकेशन” की ओर बढ़ रहा है। अभी कुछ अध्याय बाकी हैं, पर यह साफ है कि आवाज़ अब सिर्फ सड़कों से नहीं, सत्ता के गलियारों से भी गूंजने लगी है।
क्या आप जानते हैं?
हैदराबाद गजट का ज़िक्र पहले भी कई बार हुआ है, लेकिन इसे कभी भी पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया था।
यह पहली बार है जब राज्य सरकार ने इसे स्वीकार करने का लिखित वादा किया है।
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