
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर ऐसा बयान दे दिया है जो चर्चा का विषय बन गया है। दुर्गापुर में हुई मेडिकल छात्रा के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म की वारदात पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा —
“लड़कियों को रात में कॉलेज से बाहर जाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।”
अब सवाल ये है कि — क्या सुरक्षा की ज़िम्मेदारी प्रशासन की है या पीड़िता की घड़ी देखने की?
घटना पर बयान, मगर सलाह में “सिस्टम” की नहीं, पीड़िता की गलती निकली
दुर्गापुर की यह भयावह घटना ओडिशा की एक छात्रा के साथ हुई, जो एक निजी मेडिकल कॉलेज की द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। वह अपनी सहेली के साथ बाहर खाना खाने गई थी — हाँ, रात में। फिर ममता दीदी की सलाह ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा:
“निजी कॉलेजों को भी ध्यान देना चाहिए कि लड़कियाँ रात में बाहर न जाएँ।”
इसमें सुरक्षा व्यवस्था, पुलिस पेट्रोलिंग, दोषियों की मनोविकृति जैसे शब्द गायब थे — पर “लड़कियाँ बाहर क्यों थीं?” ज़रूर शामिल था।
‘कड़ी कार्रवाई करेंगे’, लेकिन पीड़िता के पिता कह रहे हैं ‘कोई कार्रवाई नहीं हुई’
मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा, तीन आरोपी गिरफ्तार भी हो चुके हैं। लेकिन पीड़िता के पिता की आवाज़ प्रशासन के दावों से मेल नहीं खाती:
“हमारी बेटी मदद के लिए चिल्लाती रही, और पुलिस का एक सायरन तक सुनाई नहीं दिया।”
सवाल यह नहीं कि बेटी बाहर क्यों गई थी — सवाल ये है कि क्या वो सुरक्षित थी?
पुलिस ने कहा: प्रोटोकॉल के अनुसार कार्रवाई हो रही है
आसनसोल-दुर्गापुर पुलिस कमिश्नरेट के डीसीपी अभिषेक गुप्ता ने कहा कि तीनों गिरफ्तार आरोपी कोर्ट में पेश किए गए हैं, और जांच जारी है। लेकिन आम जनता के सवाल अब भी हवा में हैं:
क्या “प्रोटोकॉल” में पीड़िता के दर्द की जगह है?

ममता बनर्जी का ‘Whataboutism’ भी ऑन
ममता बनर्जी ने इस घटना पर बात करते हुए दूसरे राज्यों की याद दिलाई, जैसे:
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ओडिशा में समुद्रतट पर गैंगरेप
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मणिपुर, बिहार, यूपी की घटनाएं
“दूसरे राज्य चुप क्यों हैं?” — लेकिन बंगाल की बेटी के लिए ये सवाल नहीं था कि “हम और क्या कर सकते हैं?” बल्कि जवाब मिला — “वो रात में बाहर क्यों थी?”
ममता बनर्जी की नसीहतों का सुझाव पत्र
अगर ममता दीदी की स्टाइल में एडवाइजरी जारी की जाए, तो शायद ऐसा दिखे:
रात के बाद लड़कियाँ बाहर न जाएँ, चाय तक भी नहीं। हॉस्टल से पिज्जा मंगाने पर विचार करें। अगर जाना ज़रूरी हो तो CCTV, पुलिस और ग्रहों की स्थिति जांच लें।”
जब सुरक्षा की मांग को नैतिकता की नसीहत से कुचल दिया जाता है
दुर्गापुर केस फिर एक बार यही सवाल खड़ा करता है — क्या लड़कियों के बाहर जाने का समय ज़्यादा जरूरी है, या समाज का अपराधियों से मुक्त होना?
और आख़िर में —अपराधी बाहर हैं, और बहस इस पर है कि पीड़िता क्यों बाहर थी?