
2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम ब्लास्ट ने पूरे देश को झकझोर दिया था। 29 सितंबर को हुए धमाके में 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
इस मामले में कई हाई-प्रोफाइल नाम सामने आए, जिनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित भी शामिल थे।
2025 में आया फैसला: कोर्ट ने कहा — सबूत नहीं मिले, सभी आरोपी बरी
17 साल की सुनवाई के बाद NIA कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया।
कोर्ट ने साफ कहा कि ‘आतंक का कोई धर्म नहीं होता’ और सबूतों की कमी के चलते सज़ा नहीं दी जा सकती।
इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने पीड़ित परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये मुआवज़ा देने का भी ऐलान किया।
पीड़ित परिवार बोले — “न इंसाफ़ मिला, न संतोष”
फैसले के तुरंत बाद पीड़ित पक्ष के वकील एडवोकेट शाहिद नदीम ने बयान दिया:
“हम फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। धमाका हुआ था — इसकी पुष्टि कोर्ट ने की, लेकिन दोषी कोई नहीं मिला!”
उन्होंने आगे कहा कि वे इस फैसले को स्वतंत्र रूप से हाई कोर्ट में चुनौती देंगे।
महाराष्ट्र सरकार का रुख अब तक स्पष्ट नहीं
NIA ने तो अपने हिसाब से केस क्लोज कर दिया, लेकिन महाराष्ट्र सरकार की ओर से अब तक कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं आया है। सरकार चाहे तो फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकती है, लेकिन इस पर अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
क्या था केस का मुख्य आधार?
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धमाके में इस्तेमाल की गई बाइक का रजिस्ट्रेशन साध्वी प्रज्ञा के नाम था
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कर्नल पुरोहित पर RDX सप्लाई करने का आरोप था
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कोर्ट ने माना कि धमाका हुआ था, लेकिन आरोपी दोषी नहीं साबित हो सके
प्रज्ञा ठाकुर की प्रतिक्रिया: “ये भगवा की जीत है”
फैसले के बाद प्रज्ञा ठाकुर ने बयान दिया, “ये भगवा की जीत है, झूठे आरोपों का अंत हुआ।”
(हालांकि कोर्ट ने सिर्फ बरी किया है, निर्दोष करार नहीं दिया।)
17 साल लगे इंसाफ़ की उम्मीद में, लेकिन मिला सिर्फ मुआवज़ा और भ्रम। आरोपी बरी हो गए, पर जिनके अपने मारे गए — उनका क्या?
अब निगाहें हाई कोर्ट पर टिकी हैं — क्या वहां मिलेगा पीड़ित परिवारों को न्याय? या फिर ये केस भी एक और ‘बंद फाइल’ बन जाएगा?