शिंदे जी हुए साइलेंट मोड में! कैबिनेट में ग़ायब, सियासत में गर्मी हाई

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर “शिंदे ग़ायब हैं” ब्रेकिंग बन गई है। मंगलवार को हुई राज्य कैबिनेट की अहम बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नहीं पहुंचे। साथ ही उनके खासमखास माने जाने वाले नेता भारत गोगावाले भी नदारद रहे।

अब सवाल उठ रहा है – “ये सिर्फ छुट्टी थी या सियासी स्ट्रैटजी?”

नाराज़ क्यों हैं शिंदे गुट?

खबर है कि शिंदे और उनके समर्थक खुद को सरकार में साइडलाइन महसूस कर रहे हैं।

  • अजित पवार गुट को मिल रही तवज्जो से शिवसेना खेमे की भौंहे चढ़ी हैं।

  • मंत्रियों की नियुक्तियों में हो रही “भेदभाव वाली डील” से शिंदे गुट का मन मुरझा रहा है।

भले ही वे फिलहाल सरकार छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पा रहे, लेकिन अंदर ही अंदर सियासी बॉयलर प्रेशर बढ़ता जा रहा है।

रायगढ़ की राजनैतिक रार – गोगावाले Vs अदिति तटकरे

भारत गोगावाले की नाराज़गी की वजह तो एकदम क्लियर है – उन्हें रायगढ़ जिले का प्रभारी मंत्री नहीं बनाया गया।

पहले एनसीपी की अदिति तटकरे को नामित किया गया, शिवसेना भड़क गई, नाम वापस हुआ, लेकिन फिर भी किसी को रिप्लेस नहीं किया गया।

अब 15 अगस्त पर ध्वजारोहण के लिए भी अदिति तटकरे को आमंत्रित किया गया है। अब बताइए, “अपने ही गढ़ में कोई और तिरंगा फहराए तो कैसा लगेगा?”

शिंदे की नाराज़गी – पहले दिल्ली यात्रा, अब मीटिंग से दूरी

बात यहीं नहीं रुकी। इससे पहले शिंदे जी विधानसभा सत्र के बीच में दिल्ली चले गए थे। वो भी सीधे PM मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने – मतलब साफ है, “सियासी मीठा बोलना छोड़कर अब शिकायत का सीजन चालू है!”

VIP मंत्री vs झंडा मंत्री

शिंदे गुट का कहना है –

“हम झंडा उठाते हैं, लेकिन तिरंगा कोई और फहराता है!”

वहीं भाजपा का जवाब:

“भाई, गठबंधन है… थोड़ी एडजस्टमेंट करो!”

अब क्या होगा आगे?

  • क्या भाजपा हाईकमान फिर से सियासी पट्टी लगाएगा?

  • क्या नाराज़गी रेजिग्नेशन मोड में जाएगी या सिर्फ नेता जी की भावनाओं तक सीमित रहेगी?

  • क्या अजित पवार को मिलती VIP ट्रीटमेंट से शिंदे गुट पूरी तरह उखड़ जाएगा?

शिंदे गुट की खामोशी, भाजपा की कूटनीति, और एनसीपी की चुपचाप तरक्की – महाराष्ट्र में सब कुछ सियासत से परे दिख रहा है, लेकिन असल लड़ाई सम्मान, सीट और सीनियरिटी की है।

अब देखना ये है कि कौन आगे झुकेगा – नाराज़ शेर, कूटनीतिक कमल, या सियासी चालबाज़ अजित?

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