
14 जुलाई 2025, वही लॉर्ड्स का मैदान, वही तारीख़ — लेकिन इस बार नतीजा अलग था।
छह साल पहले इसी मैदान पर बेन स्टोक्स ने खेल भावना के लिए माफ़ी मांगी थी। इस बार, वही हाथ उन्होंने जीत के जश्न में उठाए। सामने थे जडेजा — अकेले, नाबाद, लेकिन हार की चुप्पी में डूबे हुए।
रवींद्र जडेजा का संयम, बुमराह की दृढ़ता और सिराज का साहस — सब मिलकर भी उस आख़िरी रन को नहीं ला सके, जिसकी टीम इंडिया को सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।
भारत 22 रन से हार गया, लेकिन ये सिर्फ एक हार नहीं थी — ये कहानी थी उन चूकों की, जो छोटी थीं पर असर बड़ा छोड़ गईं। जो फैसले सेकेंड्स में लिए गए, उन्होंने पूरे मैच का रुख मोड़ दिया।
आइए, नज़र डालते हैं लॉर्ड्स टेस्ट में भारत की हार की पाँच सबसे बड़ी वजहों पर, जिन्होंने जीत की कहानी को हार में बदल दिया।
हेल्दी फूड की क्लास, समोसे की फीड! स्कूलों का ‘डबल स्टैंडर्ड’
टॉप ऑर्डर का ढहना और मिडिल ऑर्डर की नाकामी
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शुभमन गिल, यशस्वी जायसवाल, श्रेयस अय्यर जैसे प्रमुख बल्लेबाज़ दूसरी पारी में लड़खड़ा गए।
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58/4 से आगे खेलते हुए भारत ने पहले घंटे में 3 अहम विकेट गंवा दिए (राहुल, पंत, सुंदर)।
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मिडिल ऑर्डर से कोई टिक नहीं पाया, जिससे निचले क्रम पर दबाव बढ़ गया।
शुभमन गिल की स्वीकारोक्ति: “हमें शीर्ष क्रम से दो मज़बूत साझेदारियों की ज़रूरत थी, लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए।”
ऋषभ पंत का रन आउट — टर्निंग पॉइंट
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पंत उस वक्त सेट हो रहे थे, लेकिन स्टोक्स के डायरेक्ट थ्रो ने उन्हें रन आउट कर दिया।
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चोटिल उंगली के बावजूद पंत जूझ रहे थे, लेकिन ये रन आउट भारत के स्कोर में संभावित 30-40 रन की कटौती साबित हुआ।
शुभमन गिल का बयान: “अगर पंत कुछ ओवर और टिकते, तो मैच की तस्वीर बदल सकती थी।”
बेन स्टोक्स का कप्तानी मास्टरक्लास
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थके हुए शरीर के बावजूद उन्होंने 2 लंबे स्पेल फेंके, अहम विकेट लिए और रन आउट किया।
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गेंदबाज़ी, फील्डिंग और कप्तानी – तीनों में उनका योगदान निर्णायक रहा।
स्टोक्स: “अगर देश को जीत दिलाने से जोश नहीं आता, तो फिर कुछ नहीं बचता।”
जोफ़्रा आर्चर की रफ़्तार और वापसी
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लगभग 4.5 साल बाद टेस्ट में लौटे आर्चर ने पंत और सुंदर को क्लीन बोल्ड कर भारत की रीढ़ तोड़ी।
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उनकी 144 किमी/घंटा की गेंदें भारत के बल्लेबाज़ों के लिए असहनीय रहीं।
आर्चर : “लॉर्ड्स में वापसी मेरे करियर का सबसे भावुक पल था।”
अंतिम घंटे का मानसिक दबाव और रणनीति की चूक
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जैसे ही जीत का लक्ष्य पास आने लगा, सिराज और बुमराह पर दबाव हावी हो गया।
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इंग्लैंड का शॉर्ट बॉल प्लान और स्लेजिंग ने tailenders को मानसिक रूप से थका दिया।
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शोएब बशीर की टूटी उंगली से डाली गई गेंद ने आख़िरी विकेट गिरा दिया।
जडेजा के चेहरे का खालीपन बता रहा था – उन्होंने सब कुछ किया, पर जीत नसीब नहीं हुई।
भारत की यह हार आंकड़ों से नहीं, मनोबल, रणनीति, और क्षणों की चूक से तय हुई। जडेजा-बुमराह का संघर्ष मिसाल बना, लेकिन टेस्ट क्रिकेट सिर्फ तकनीक का नहीं, धैर्य और सोच का भी इम्तिहान होता है।