
हमारी ज़िंदगी का रिमोट कंट्रोल अक्सर हमारे हाथ में नहीं होता… बल्कि उन ‘चार लोगों’ के हाथ में होता है, जिनका असली काम सिर्फ अंतिम यात्रा में कंधा देना है।
जब मंथरा को राम बुरे लगे…
राम, जिन्हें Maryada Purushottam कहा गया, वो भी मंथरा की नजरों में विलेन थे।
अब सोचिए साहब — अगर राम भी सबको अच्छे नहीं लगे, तो आप और हम किस खेत की मूली हैं?
गांधारी को कृष्ण भी नहीं समझ आए…
कृष्ण जैसे योगेश्वर भी गांधारी के गुस्से का शिकार बने। गांधारी ने आंखों पर पट्टी क्या बांधी, पूरा विवेक ही लपेट लिया।
तो अगर आज आपको लोग गलत समझते हैं, congrats!
आप भी किसी बड़े काम पर निकले हैं।
क्यों डरें उन चार लोगों से… जो अंत में कंधा देंगे?
वो चार लोग जिनके तानों से हम जिंदा रहते डरते हैं — वही लोग मरने के बाद कंधा देकर कहेंगे: “अच्छा इंसान था, बस थोड़ा अलग सोचता था…”
अब बताइए, जब अंत में तारीफ ही करनी है, तो जीते जी तिरस्कार क्यों?
दूसरों को खुश रखने की कीमत: खुद को खो देना
“लोग क्या सोचेंगे?”
यही सोचते-सोचते लोग खुद की सोच खो देते हैं।
हर किसी को खुश करना वैसे ही नामुमकिन है जैसे ट्रेन के हर डिब्बे में एसी लगवा देना। किसी को ठंड लगेगी, किसी को गरमी — आपका काम है चलना।
जी लो यार, लोग तो कुछ भी कहेंगे
जब राम पर शक हुआ, कृष्ण पर आरोप लगे, तो आपको जज करने वाले लोग कौन-से भगवान हैं?
इसलिए अगली बार जब कोई कहे “क्या सोचेगा समाज?”
तो कहिए — “उसे सोचना है, मुझे जीना है!”
नाव पर चलती थी दुनिया, और बारिश में लड़कपन भीगता था दिल समेत